Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 363
________________ ३५० अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो व संखे a ज० । श्रवट्टि० श्रसंखे० गुणा | अध्पद० संखे० गुणा । सोलसक० छण्णोक० श्रोधं । ९७६६. मणुसेसु मिच्छ०-सोलसक० सत्तणोक० पंचिदियतिरिक्खभंगो । सम्म० सब्वस्थोवा अवद्विः । भुजः संखे० गुणा | गणराज सम्मामि० सव्वत्थोवा अवत० | अप्पः संखे० गुणा । इत्थवे ० - पुरिसवे० सव्वत्थोवा अवत्त० । भुज० संखे० गुणा । अवद्वि संखे० गुणा । श्रप्पः संखे० गुणा । एवं मणुसप० । वरि संखेजगुणं कादव्वं । इत्थवेदो रास्थि । नुंस० पुरिसभंगो | ससिणी० एवं चेत्र । वरि पुरिसवे ० नपुंस० णत्थि । इत्थवेद ० मणुसोधं । ३७६७. देवेसु मिच्छ्र०-सोलसक० छण्णोक० सम्म० सम्मामि० णाश्यभंगो । इस्थिवेद- पुरिसवेद० मिच्छत्तभंगो | णवरि अवत्त० णत्थि । एवं भवणादि जाब सोहम्मीसाणेति । एवं सणक्कुमारादि जाव सहस्सार ति । खवरि इत्थिवेदो णत्थि । आणदादि णवगेवजा चि मिच्छ० सम्मामि सोलसक० इराणोक० सच्चत्थोवा श्रवत्त० । अप्पद० असंखे० गुणा । सम्म० सच्चस्थोवा भुज० । श्रवत्त० श्रसंखे० गुणा । वेदकी भुजगार स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अवस्थित स्थिति उदीरक जीव असंख्यातगुण हैं । इनसे अल्पतर स्थितिके उदीस्क जीव संख्यातगुणे हैं। सोलह कषाय और छह नोकपाका भंग ओधके समान है । ९७६६. मनुष्यों में मिध्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकपायका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यों के समान है। सम्यक्त्वकी अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगार स्थितिके उदरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतर स्थितिके उदोरक जीव संख्यातगुणे हैं । सम्यमिध्यात्व की अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदक अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे भुजगार स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे श्रल्पतर स्थितिके हीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार मनुष्य पर्यातकों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुण करना चाहिए। स्त्रीवेद नहीं है । नपुंसक वेदका भंग पुरुषवेद के समान है । मनुष्विनियोंमें इसीप्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । ववेदका भंग सामान्य मनुष्यों के समान है । O $ ७६७, देशों में मिध्यात्व, सोलह कषाय, छह नोकषाय, सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग नारकियोंके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग मिध्यात्व के समान है । इतनी विशेषता है कि इनकी अवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं है । इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म और ऐशान कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए। इसीप्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। श्रम कल्पसे लेकर नौ मैत्रेयकतकके देवों में मिध्यात्व, सम्यरिमध्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकपायकी अवक्तव्य स्थितिके उदरिक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे अल्पतर स्थिति के उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्वकी भुजगार स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। } F

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