Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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मार्गदर्शक- प्रचार्य श्री सांवधिसागर जी मह
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अयधवलासहिदे कसायपाहुडे 1 [वेदगो उदी० । सम्मामि० अस्थि असंखे भागहाणि-अवतः । सोलसक०-छण्णोक अस्थि असंखे भाणहाणि संखे भागहाण अवतरला एवं पुरिसवेद । णवरि अवस० स्थि । अणुहिसाँदि सब्वट्ठा ति सम्म०पारसक-एणोक० अस्थि दोहाणि-अवत्त । एवं पुरिसवेद० । णवरि अवत्त० पस्थि । एवं जाव।।
६७८५. सामित्ताणु० दुविहो णि-अोघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०. अणंताणु० चउक्क. सबपदा कस्स ! अण्णद० मिच्छाइद्विस्स | सम्म सवपदा कस्स ! अण्णद० सम्माइद्विस्स | सम्मामि. सधपदा कस्स ! अण्ण सम्मामिच्छाइदिस्स । बारस०-गवणोक० तिण्णिवड्डि-अयहि कस्स ? अण्णद मिच्छाइद्विस्स । तिष्णिहाणि-अवत्त० कम्म ? अण्णद० सम्माइ द्रु० मिच्छाइद्विस्स वा । णवरि चदुसं जल-पुरिसवे. असंखे०गुणवड्डि-हाणि० इत्थिवे०-णवुस० असंखे०गुणवड्डि-हाणि कस्स ? अण्णद० सम्माइद्विस्स । एवं मणुसतिए । णवरि पुरिसवे०चदुसंजल० असंखेजगुणवड्डि० णस्थि । णिसेयपहाणत्ते चदुसंजल० असंखे गुणवडि. मणुसतिए वि संभवइ, खबगसेढीए किट्टीवेदगम्मि संगहकिट्टीणं संधीसु तदुचलंभादो । लोभसंजलणस्स पुण कालपहाणसे वि असंखेजगुणवाहि. अस्थि, उत्रसमसेढीए सुहुम
वृद्धि, दो हानि और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा है। सम्यग्मिध्यात्यकी असंख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थिति उदीरणा है। सोलह कषाय और छह नोकपायकी असंख्यान भागहानि, . संख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थिति उदीरणा है। इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी प्रवक्तव्य स्थिति उसीरणा नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिलकके देवों में सम्यक्त्त, बारह कषाय और छह मोकपायकी दा हानि और प्रवक्तव्य स्थिति उदीरणा है । इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसकी प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा नहीं हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
fu६५. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और आदेश । ओघसे मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके सब पद किसके होते हैं ? अन्यतर मिध्यादष्टिके होते हैं । सम्यक्त्वके सब पद किसके होते हैं । अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होते हैं । सम्यग्मिध्यात्वके सब पद किसके होते हैं। अन्यतर सभ्यग्मिथ याष्टिके होते हैं। बारह कवाय और नी नोकषायकी तीन वृद्धि और अवस्थित स्थितिउदीरणा किसके होती है ? अन्यतर मिथ्याष्टिके होती है। तीन हानि और अवक्तव्य स्थितिउदोरणा किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्याटिके होती है। इतनी विशेषता है कि चार संज्वलन और पुरुषवेदको असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानि तथा खीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानि स्थितिउदीरणा किसके होती हैं ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिक होती है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद और चार संसल नको असंख्पास गुणवृद्धि स्थिति उदारणा नहीं है। निषेकोंकी प्रधानतामें चार संचलनको असंख्पात गुणवृद्धि स्थिति उदीरणा मनुष्यत्रिको भी सम्भव है, क्योंकि क्षपकौणिमें कृष्टिरेदकके संप्रहकृष्टियों को सन्धियोंमें बह पाई जाती है। परन्तु लोभसंज्वलनको कालकी प्रधानतामें भी प्रसंख्यात