Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 342
________________ गा० ६२] उत्तरपयडिहिदिउनीरणा भुजगारप्रणिोगहारं ३२६ उक० उबड्डपोन्गलपरियढें । एवमणंताणु०४ । वरि अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० वेलायडिसागरो० देसूणाणि । एवमट्टकसाय० । णवरि अप्प०-अवत्त० जह• एयस० अंतोमु०, उक्क० पुग्यकोडी देखुणा । एवं चदुसंजलण-भय-दुगुंछा० । णवरि अप्प०अवत० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं हस्स-रदि० । णवरि अप्प-अवत्त० जह० एगम० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । एवमरदि-सोग । गरि अप्प० जह• एगस०, उक्क. छम्मासं । सम्म० भुज०-अप्प०-अवढि०-अवत्त० सम्पामिक अप्प० अवत्त० जह० अंतोमुहत्तं, उक्क० उपयोग्गलपरियट्टं ! इस्थिवे. पुरिसवे. भुज-सम्पदवष्टुि० असहर्ष श्रीपसमासयमा पाहाब अंतोमु०, उक्क० सम्वेसिमरणतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । गमवे. भुज-अप्प०-अबढि० जह० एगम, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । अबत्त० इथिवेदभंगो । स्थिनिन दोरण का जवन्य अन्तर अन्न मुहत है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल. परिवर्तनप्रमाण है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जान लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागरप्रमाण है। इसीप्रकार पाठ कषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अल्पतर और अवक्तव्य स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। इसीप्रकार चार संज्वलन, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जान लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरण।का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । इसीप्रकार हास्य और रतिकी अपेक्षा जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर क्रमसे एक समय और अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है 1 इसीप्रकार अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि अल्पतर स्पिति उदारणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। सम्यक्त्वकी भुजगार, 'अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका तथा सम्यग्मिध्यात्वकी अल्पतर और प्रवक्तव्य स्थितिउदारणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्थ पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगार, पाल्पतर और अवस्थिन स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है. श्रवक्तव्य स्थिति उदारणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूते है और सबका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त फाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। नपुंसकवेदकी भुजगार, अस्पतर और अवस्थित स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण है । अवक्तव्य स्थिति उदीरणाका भंग आंघ के समान है। विशेषार्थ-जिन्होंने मनुष्यों और तियश्चोंमें भिध्यात्वको भुजगार और अवस्थित स्थितिका उदीरणा प्रारम्भ किया। पुनः वहींपर अन्तर्मुहूर्त कालतक अल्पतर स्थितिउदारणास उन्हें अन्तरित किया। पुनः वे तीन पल्यकी आयुवाले जीवोंमें उत्पन्न होकर और एफसी वेसठ सागर फालतक परिभ्रमण करके मनुष्योंमें उत्पन्न हुए और वहाँपर उन्होंने अन्तर्मुहूर्त 1. ता०प्रती प्रवत्त-अप इति पारः।

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