Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 358
________________ गा० ३२] अत्तरपडिद्विदिउदीराए भुजगारअणिोगहारं ३४५ ६७५४. मणुसपज-मणमिणी सधपयडी० अप्प.-अवडि. सन्नद्धा । सेसपदा जह• एयस०, उक० संखेना समया | णवरि सम्म०-सम्मामि० मणुसभंगो । अणुसअपम० सन्चपयडी. अप्प.-अवष्टि जह० एस०, उस पलिदो० असंखे०भागो । सेसपदा० जह० एयस०, उक्क, आवलि० असंखे०भागो । ६७५५. देवेसु सम्बपद० अप्प०-प्रवद्वि० सम्बद्ध | सेमपदा० जह० एयम, उक. आवलिं, असंखे०भागो । णवरि सम्म सम्मामि प्रोघं । एवं मवणादि जात्र सहस्सार त्ति | आणदादि णवमेवजा ति मिच्छ०-मम्म०-सोलसक०-छण्णोक० अप्प सम्बद्धा । सेस पदा० जह० एगस०, उक्र० प्रायलि. असंखे० भागो । पुरिसके. अप० सन्चद्धा । सम्मामि० ओघं | अणुद्दिमादि अवराजिदा ति सम्म० अप्प. सम्बद्धा । अवत्त० जह. गगममो, उक्क संखेजा समया । बारमक छष्णोक. अप्प सम्बद्धा । अवत्त • जह० एपम०, उक्क, आवलि. असंख० मागो । पुरिसवे० अप्पमासया । वसन्सविणवार अवतारजह० एयसमयो, उक्क० संखेजा ५४. मनुष्य पर्यात और मनुष्यनियोंमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर और अवस्थित स्थिति के बदीरकोका काल सर्वदा है। शेष पाके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इननी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिन्यात्वका भंग मनुष्यों के समान है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंको अल्पतर और अवस्थित स्थिति के उदीरकोका जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल मावलिके असंख्यातवें भायप्रमाण है। 5७५५. देयॉमें सब प्रकृतियोंकी अल्पतर और अवस्थित स्थिनिके उदीरकाका काल सर्वदा है 1 शेष पदोंके उदीरकोंफा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रापलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्त और सभ्यग्मिथ्यालका भंग ओघके समान है । इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सहनार कल्पतकके देवों में जानना चाहिए । आनत कल्पसे लेकर नी धेयकतकके देवीमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकपायकी अल्पतर स्थितिके उदीरकों का काल सर्वदा है। शेष पदोंके उनीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। पुरुषवेदको अल्पतर स्थितिके उमीरकोंका काल सर्वदा है। सम्याग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। अनुदिशसे लेकर अपराजिततकके देवामें सम्यक्त्रको अल्पतर स्थिति के उदीरक जीवोंका काल सर्वया है। श्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीवांका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। बारह कषाय और छह नोकपायकी अल्पतर स्थितिके बदीरक जीवोंका फान सर्वदा है। श्रवक्तव्य स्थितिके बदीरक जीयोंका जघन्य फाल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातचे भागप्रमाण है। पुरुषवेदकी अल्पतर स्थितिके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धि में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अषक्तव्य स्थितिके उदीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृय काल संख्यात समय है। इसीप्रकार .. तर०प्रती पलिदो० इति पाठ ।

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