Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 353
________________ दर्शक:- आचाय ३४० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो अवत्त० सम्म०-सम्मामि०-हस्थिधे०-पुरिसवे० सञ्चपदा लोगस्स असंखे भागे । एवं तिरिक्खा० । सेसगदीसु सम्पयडीणं सव्वपदा लोग० असंखे०मागे । एवं जाव० । ५७४६. पोसणाणु० दुविहो णिक-प्रोघेण श्रादेसेण य । श्रोघेण मिच्छ.. सोलसक० सत्तणोक० सम्बपदेहि केवडियं खेत्तं पोसिदं ? सबलोगो । णवरि मिच्छ. अवत्त० लोग० असंखे०भागो, अह-बारहचोइस भागा वा देसूणा । णस० अवत्त० लोग० असंखे भागो, सबलोगो वा । सम्म०-सम्मामि सब्बपदा लोग० असंखे०. भागो, अट्ठचोदस० देखणा | इस्थिवे-पुरिसवे० सबप. लोग. असंखे० भागो, अडचोइस० दे० सबलोगो वा । णवरि प्रवत्त लोग. असंखे०भागो, सबलोगोवा । जदीरक जीवोंका तथा सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सष पदोंके उदीरक जीवांका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसीप्रकार सामान्य तिथंचामें जानना चाहिए। शेष गतियों में सब प्रकृतियों के सब पदोंके उदीरक जीवोंकाव बोकही असंख्यातये भागप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहौरक मार्गणातक जानना चाहिए""" ४६. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और भादेश 1 ओघसे मिध्यात्व, सोलह कषाय और सास नोकषायके सब पदोंके उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकक्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वकी श्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातये भाग तथा त्रसनाली के चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और बारह भागप्रमा क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नपुसकवेदकी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीषोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब.. पदोंके वदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा वसनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और पुरुषबदके सब पदोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यासवें भाग तथा सनाली के चौदह भागोंमसे कुछ कम आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि इसकी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ—जो देव विहारयत्स्वस्थानके समय सम्यक्त्वसे च्युत होकर मिथ्यात्वको प्राप्त होते हैं उनके मिथ्यात्वकी अवक्तव्य स्थिति के उदीर कोका बसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण स्पर्शन पाया जाता है 1 तथा नीचे कुछ कम पाँच राजु और ऊपर छ कम सात राजु इसप्रकार मिथ्यात्वकी प्रवक्तव्य स्थिनिके उदीरकोंका बसनालोके चौदह भागों में से कुछ कम बारह भागप्रमाण स्पर्शन भी बन जाता है। यहाँ मिथ्यात्वकी श्रवक्तव्य स्थितिके उन्दीरकोंका जो स्पर्शन कहा है उसमेंसे स्पष्टीकरण योग्य स्पर्शन यह खुलासा है । वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्याइष्टि जीवोंके स्पर्शनको ध्यानमें रखकर यहाँ सम्यक्त्त और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंका स्पर्शन कहा है। उससे अन्य कोई विशेषता न होनेसे यहाँ अलगसे खुलासा नहीं किया है। पञ्चेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके स्पर्शनको । ध्यान में रखकर यहाँ स्त्रीयेद और पुरुषवेदके सब पदोंके उदीरकोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवे भाग तथा वसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम पाठ भाग और सर्व लोकप्रमाण कहा है। मात्र आगमसे इन जीवोंके लोकका असंख्यान बहुभाग स्पर्शन प्रतरसमुद्घातकी अपेक्षा कहा गया है, किन्तु स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उदारणा करनेवाले जीवोंके प्रतरसमुद्घात नहीं होता,

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