Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 355
________________ ३४२ अयधवलासहिदे कसायपाहुरे [ वेदगो ७४९. पंचिंदियतिरिक्खतिए मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० सव्यपदा लोग असंखे०भागो सव्वलोगो चा। णवरि मिच्छ० अवत्त० सत्तचोद्दस० | णवंस० श्रवत्त० इस्थिवे०-पुरिसवे. भुज-अवढि०-अवत्त० खेत्तं । सम्म-सम्मामि० तिरिक्खोघं । वरि पजत्त० इत्थिवेदो गस्थि । जोणिणीसु पुरिसवे०-गईंस० णस्थि । इस्थिवे. अवत्त० णस्थि । पंचिंतिरिक्खअपज-मणुसअपज० सवपयडीणं सवपदा लोग. असंखे भागो सबलोगो का । मणुसतिए मिच्छ -सोलसक०-णवणोक० पंचितिरिक्खतियभंगो । सम्म० सम्मामि० खेत्तं । परि पज्ज० इत्थिवे. गस्थि । मणुसिणी० पुरिसवे०-णस० णस्थि । इस्थिवे. अयत्त० खेत्तं ।। ७५०. देवेसु सब्वपयडीणं सधपदा लोग० असंखे भागो अट्ठ-णवचोइस० । णवरि इथिवे०-पुरिसवे. भुज०-अवढि० सम्म०-सम्मामि० मध्यपदा लोग० असंखे०. भागो अनुचोद्दस० । एवं सोहम्मीसाणे । एवं भवण बाणवें०-जोदिसि० । णवरि क्षेत्रका स्पर्शन करते हैं, इसलिए यहाँ पर मिथ्यात्वकी अवक्तव्य स्थिति के उदीरकों का स्पर्शन उक्त क्षेत्रप्रमाण कहा शोष कथन सगम सुविद्यासागर जी महाराज ६७४६. पश्चेन्द्रिय तियश्चत्रिक में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायके सम पदों के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिध्यात्वकी प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंने बसनालीके चौदह भागामसे। कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नपुसकवेदकी श्रवक्तव्य स्थिति के उदीरका .. का तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिफे उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग सामान्य तियचोंके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियां में पुरुपवेद और नपुसकवेद नहीं है। इनमें स्त्रीवेदकी प्रवक्तव्य स्थिति उदारणा नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियोंके सब पदवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यधिकमें मियात्य, सोलह कषाय और नौ नोकपाय का भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यज्यत्रिकके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुष्यनियों में पुरुषवेद और नपुसकावेद नहीं है । इनमें स्त्रीचेदकी प्रवक्तव्य स्थिति के उदीरकोंफा भंग क्षेत्रके समान है। विशेषार्थ-पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकके ऊपर एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात करते समय मिथ्यात्वकी श्रवक्तव्य स्थितिब्दीरणा बन जाती है, इसलिए मिथ्यात्वकी प्रवक्तव्य स्थिति के उद्दीरकोंका स्पर्शन वसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम सान भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। ५०. देवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पवालोंने लोकके असंख्यानवे भाग तथा घसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी भुजगार और अवस्थित स्थिति के उदीरकोंने तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदवालोंने लोकके असंख्यातवे भाग तथा प्रसनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार सौधर्म और ऐशान

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