Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२ ]
उत्तरपथ डिडिदिदीरणाए भुजगारअणि भगद्दारं
तिए श्रघं । वरि पञ्ज० इस्थिवे
त्थि । मणुसिणीसु पुरिसवे० एस० पत्थि । $ ७१०. देवेसु मिच्छ० सम्म० सम्मामि० सोलसकः-शोक ० श्रोषं । वरि इत्थवे ० - पुरिस० अवत्त० णत्थि । एवं भवरण० वाणये ० - जोदिसि ० - लोहम्मी5 साणे ति । सक्कुमारादि सहस्सार चि एवं वेव । वरि इस्थिवे ० पत्थि | आणदादि ववजा तिमिच्छ०-सम्मामि० सोलसक० छण्णोक० अस्थि अप०अवत्त० | पुरिसवे० अस्थि अप्प०ड्डि दिउदी० | सम्म अस्थि भुज० अप्प० श्रवत्त ०डिदिउदी 10 | अणुद्दिसादि वा ति सम्म बारसकः छण्णोक० श्रत्थि अभ्य०मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज अत्तः । पुरिसवे० अस्थि अप्प • डिडिउदी० । एवं जाव ०
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६ ७११. सामित्ताणु० दुविहो णि०- - ओघेण आदेसेण य । श्रघेण मिच्छ०श्रताणु०४ भुज० श्रप्प० द्वि० अवत्त० कस्स ? अण्णद० मिच्याइट्टिस् | सम्मत्तस्स भुज० - अप० अत्र डि० ० अवत्त० कस्स १ अण्णद० सम्माइट्टि । सम्मामि० अप० श्रवत्त० कस्स १ अण्णद० सम्मामिच्छादिट्ठि० । बारसक० णवणोक० भुज:अवट्टि ० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइडि० । अप्प० श्रवत्त० कस्स ? श्रण्णद० मिच्छा
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समान भंग है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तका में स्त्रीवेदक उदीरणा नहीं है और मनुष्यनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं है ।
७१०. देवों में मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायका भंग के समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें बीवेद और पुरुषवेदकी अवक्तव्यस्थिति के उदीरक जीव नहीं हैं। इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म ऐशानकल्पके देवों में जानना चाहिए। सनत्कुमारकल्प से लेकर सहस्रार कल्पतकके देवा इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें श्रीवेदक उदीरणा नहीं है । श्रानन्तकल्प से लेकर नौ मैवेय तक देवोंमें मिध्यात्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायकी अन्तर और अवक्वव्यस्थितिके उदीरक जीव हैं । पुरुषवेदकी अल्पतरस्थितिके उदीरक जोष हैं। सम्यक्त्वकी भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और छह नोकषायकी अल्पतर और वक्तव्य स्थिति उदीरक जीव है । पुरुषबेरकी श्रल्पतरस्थितिके उदीरक जीव हैं। इसीप्रकार अनाहारक भार्गवक जानना चाहिए ।
३७११. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । घोघसे मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी भुजगार, अल्पयर, अवस्थित और अवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव कौन हैं ? अल्पतर मिथ्यादृष्टि जीव उदीरक हैं। सम्यक्त्वकी भुजगार, अल्पतर, sattra और अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव कौन हैं ? श्रन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उदोरक हैं। सम्यग्मध्यात्यकी अल्पतर और अवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव कौन हैं ? अन्यतर सम्यग्मध्यादृष्टि जीव उदीरक हैं। बारह कषाय और नौ नोकषायकी भुजगार और अवस्थितस्थिति उatre जीव कौन हैं ? अन्यतर मिध्यादृष्टि जीव उदीरक हैं। अल्पतर और