Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] उत्तरपयडिउदीरणाए ठाणाणं एयजीवेण कालो पडिवएणो चि वसव्यं । एगूणवीस-वीसपवेसगाणं पि अप्पणो पयडीयो अोकड्डेऊण सक्काले चेव कालं कादण देवेसुप्पण्णो त्ति वत्तव्यं ।
8 उकस्सेण अंतोमुटुत्तं ।
। २९३. तं जहा–एकिस्से पवे. ताच उच्चदे । इस्थिवेदलोहसंजलणाणमुदएण खवगसेटिं चढिदो अवगदवेदपढमसमयप्पडुडि जाव सुहुमसांपराइयचरिमसमयो त्ति ताव एक्किस्से पत्रेसगो होइ । एसो एकिससे पवेसगस्स उक्कस्सकालो । दोएहं पवेसगस्स वि खवगसेढीए चेत्र उकासकालो घेत्तव्यो, पुरिसवेदोदएश खवगसेढिमारूढस्स अंतरकरणं कादण समऊणावलियमेत्तकाले गदे तदो प्पहुडि जाब पुरिसवेदपढमद्विदिचरिमसमयो तात्र दोण्हं पवेसगत्तदंसरणादो | तिहं पवेसगस्स तिविहं लोभमोड्डिय हेट्ठा प्रोदग्माणगो उचसामगो जाव तिविहं मायं ण ओकहदि ताव एसो उकस्सकालो घेत्तव्यो । एवं सेसाणं पि वत्तव्यं । णवरि तेरसण्हं पवे० खबगसेढीए अट्ठकसाएसु सविदेसु जाव अंतरकरणं कादण दोराहे पचेसगो ण होइ ताव एसो कालो घेतव्यो ।
प्यदुराहं सत्तएहं दसराहं पयहीणं पवेसगो केवचिरं कालादो होइ ? . २९४. सुगम ।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज
जहणुकास्सण एयसमश्री। - के प्रवेशस्थानको प्राप्त हुआ ऐसा फहना चाहिए। उन्नीस और बीम प्रकृनियों के प्रवेशकोंके भी
अपनी अपनी प्रकृतियोंका अपकर्णरण कर उसी समय मरकर दवाम उत्पन्न हो गया ऐसा करना चाहिए।
* उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है।
२३. यथा-एक प्रकृतिके प्रवेशकका सर्व प्रथम कहते हैं जो जीव स्त्रीवेद और लोभसंज्वलमके उदयसे क्षपकणिपर चढ़ा है वह अपगतवेदके प्रथम समयसे लेकर सूक्ष्मसाम्यराय गुणस्थानके अन्तिम समय तक एक प्रकृतिका प्रवेशक होता है। यह एक प्रकृतिक प्रवेशकका उत्कृष्ट काल है। दो प्रकृतियों के प्रवेशकका भी उत्कृष्ट काल क्षपकौणिमें प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवके अन्तरकरण करके एक समय कम एक श्रावलि मात्र काल जाने पर वहाँसे लेकर पुरुषवेदकी प्रथम स्थितिके अन्तिम समय तक दो प्रकृतियांका प्रवेश देखा जाता है। तीन प्रकारके लोभका अपकर्षण कर उतरता हुआ उपशामक जीत्र जब तक तीन प्रकारकी मायाका अपकर्षण नहीं करता तव सक सोम प्रतियोंके प्रवेशकका यह उत्कृष्ट काल होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। इसी प्रकार शेष प्रवेशस्थानोंका भी उत्कृष्ट काल कहना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि तेरह प्रकृतियोंके प्रवेशकके, क्षपकवेगिमें आठ कषायोंका क्षय कर जब तक अन्तरकरण कर दो - प्रकृतियोंका प्रवेशक नहीं होता तब तकका काल लेना चाहिए।
* चार, सात और दस प्रकृतियों के प्रवेशकका कितना काल है ? 5 २६४. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है।
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