Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ जयधक्लासहिदे कसायपाहुरे [दगो ६६५४. निरिक्खेतु सोलमक-भय-दुगुंछा. जह• अजह० केत्ति ? अणंता 1 मिझारणत्रु सचम लोकविशिल्याकेमि०पहारनसंखेजा। अजह० केत्ति ? अणंता । सम्म० ओघ । सम्मामिदस्थिवे०-पुरिसवे. जह० अजह० केत्ति ? अमखेला। पंचिंदियतिरिक्खतिय० सम्म० ओघ । सेमपयडी. जह० अजह । केत्ति ? असंखेजा । णवरि पत्त० इथिवे णस्थि । जोणिणीसु पुरिम-गर्बुस० णस्थि । सम्म० सम्मामि० भंगो । पंचिंदितिरिक्ख अपञ्ज-मणुसअपज-सवणवाणवे० सबपयडी० जह• अजह, संखेचा । ६६५५. मरणुसेसु मिच्छणबुस-चदुसंज०-चदुणोक० जह० मखेजा । अज. कत्ति ? असंग्वेजा । सम्म०-समामि०-इस्थिवे-पुरिसवे० जह• अजह० संखेजा। पारसक-भय-दुगुछा० जह० अजह० असंखेजा । मणुभपज०-मणुसिणी-सव्वदेवसु सअपय० जह० अजह० संग्वेजा। ६६५६. देवेसु मम्म० ओघ । सेसपय० जह. अजहर केत्तिया ? असंखेजा। जोदिमियादि जाव गवगेवज्जा ति दसणतियस्स देवोपं । सेसपय.. प्रकृतियोंकी जगन्ध और अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव असंख्यात हैं। ६५४. तिर्यों में सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थितिफे उहीरक जीव कितने हैं ? अनन्न हैं 1 मिथ्यात्त्र, नपुसकवेद और चार नोकपायकी जघन्य स्थिनिफे उहीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अजघन्य स्थिति के उदीरक जीव कितने हैं ..." अनन्त हैं। सम्यक्त्वका भंग ओवक समान है। सम्याग्निच्यात्व, स्त्रीचंद और पुरुषवेदकी जघन्य और अजयन्य स्थितिक उदीपक जीव फितन हैं ? असंख्यात हैं। पञ्चेन्द्रिय निर्यकचत्रिकमें सम्यक्त्वका भंग भोपन ममान है। शंप प्रकृतियांकी जघन्य और मजघन्य स्थिनिक उदीरक जीव कितने हैं ! असम्यान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तका में स्त्रीवेदकी उदारणा नहीं है। तथा योनिनीतिर्यचौम पुरुषवेद और, नपुंसकवेषकी उनीगणा नहीं है। तथा इनमें सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्वक समान है। पञ्चेन्द्रिय निर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्यात, भवनवासी और व्यन्तर देवीमें सब प्रकृनियोंकी जघन्य और प्रजघन्य स्थितिके वीरक जीव मख्यात हैं। ६५५. मनुष्यों में मिथ्यात्व, नपुसकवेद, चार मंज्वलन और चार नोकपायी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव संख्यात हैं। अजघन्य स्थितिके वीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुपयेदी जघन्य और अजघन्य स्थितिक उदारक जीव संख्यान हैं। घारह कपाय, भय और जुगुप्माकी जनन्य और अजघन्य स्थिनिके उदीरफ जीव असंख्यात है। मनुष्य पर्यान, मनुध्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवामें सब प्रकृतियांकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव संख्यात हैं। ६५६. दवाम सम्यकालका भंग प्रोत्रके समान है। शेष प्रकृनियों की जघन्य और अजघन्य स्थितिके पदीरक जाय कितने है ? असंख्यात है। ज्योतिपियार लेकर नौ प्रबेयक नक वाम तीन दर्शनमोहनीयका भंग सामान्य देवाके समान है। शंप प्रकृतियोंकी जघन्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407