Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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वादासागर जी महाराज
गा०६२]
उत्तरपयडिहिदिउदीरणाए पोसणं असंखे० भागो अढचोइस० । एवं भवणवाणवें । णवरि सगपोसणं । सम्म सम्मामि० भंगो। जोदिसि० भवणभंगो। णवरि अणंताणु०४ जह• अछुट्ट-अट्ठचोद्दस० । अजह० लोग० असंखे०भागो अधुट्ठ-अट्ट-णवचोइस० ।
६७१. सोहम्मीसाणे देवोघं । णवरि अणंताणु०चउक्क० जह• अट्ठचोइस० देसूणा । अजह• अट्ठ-णवचोइस० देसूणा !
६७२. सणकुमारादि जाव सहस्सार त्ति मिच्छ०-सम्मामि०-अणंताणुकचउक्क० जह० अज० लोग० असंखे० भागो अढचोहम० देसणा। सम्म० बारसक..
सत्तणोक. जह० खेतं । अजह० लोग० असंखे०भागो अटुचोद्दसः । मार्गदर्शक :- आचाई सणादि जाव अच्चुदा ति सम्म०-सोलसक०-सत्तणोक० जह.
खेत्तं । अजह लोग असंखे भागो छचोद्दस । मिच्छ०-सम्मामि० जह. अजहः असंख्यात भाग और मनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम पाठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सभ्यम्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकाने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागोंमसे कुछ कम पाठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनाअपना स्पर्शन कहना चाहिए | तथा इनमें सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिथ्यात्वके समान है। ज्योतिषी देवोंमें भवनवासियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें अनन्तानुबन्धीचतुडककी जघन्य स्थितिके उदीरकोंने समालीके चौदह भागमिसे कुछ कम साहे तीन भाग
और आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शत किया है । अजघन्य स्थितिके उदारकोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्र्सनालीके चौदह भागों से कुछ कम साढ़े तीन भाग, पाठ भाग और नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
६६७१. सौधर्म और ऐशामकल्पमें सामान्य देवोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्की जघन्य स्थितिके उदीरकोंने घसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ मागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य स्थिति के उदीरकोंने त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
१६७२. सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिध्यात्व और अतन्तानुबन्धीमतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके पसंख्यातवें भाग और असमालीके चौदह भागों में से कुछ कम पाठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व, बारष्ट्र कष य और सात नोकपायोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और प्रसनालीके चौदह भागॉमसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
६७३. अानतकल्पसे लेकर अच्युत कल्पतकके देवा में सम्यक्त्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागों से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बमनालीफे चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह