Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 328
________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज उत्तरपय डिडिदिउदीरणाए हिंदिप्पाबहु गा० ६२ ] ३१५ O १६९९ विदियादि जाव छडि ति सव्वत्थोवा मिच्छ० जह० विदिउदी० । दिउदी असंखे० गुणा सम्मामि० जह० डिदिउदी० असंखे० गुणा सम्म० जह० द्विदिउ० बिसेसा० । बारसक० सत्तरोक० जह० डिदिउदी० संखे० गुणा । अनंताशु० चउक्क० जह० ङ्किदिउदो विसे० । ६७००. सत्तमा सव्वत्थोवा मिच्छ० जह० डिदिउदी० । जडिदि० असंखे ०गुणा । सम्मामि० जह० विदिउदी० श्रसंखे० गुणा । सम्म० जह० विदिउदी० विसेसा० | हरूस-रदि० जह० डिदिउदी० संखे० गुणा | अरदि-सोग० जह० डिदिउदी० विसे० | वंस० जह० विदिपदी० त्रिसे० मग दुगुंछा० जह० डिदिउदी० विसेसा | सोलसक० जह० विदिउदी० विसेसा० । | १७०१. तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा मिच्छ० सम्म० जह० डिदिउदी० | जट्ठिदि ० असंखे० गुणा । पुरिसवे० जह० डि दिउदी० असंखे०गुणा । इत्थिवेद० जह० हिदिउदो० विसेमा० । हस्स-रदि० जह० द्विदिउदी० विसेसा० । श्ररदि-सोग० जह० द्विदिउदी ० विसेसा० । स० जह० द्विदिउदी ० विसेसा० । भय-दुगु छा० जह० हिदिउदी ० विसेसा० | सोलसक० जह० द्विदिउदी ० विसंसा० | सम्मामि० जह० ६. दूसरीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक हैं। उससे यत्स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे सम्यग्मिध्यात्व की धन्य स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे बारह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा संख्यातगुणी है। उससे अनन्तानुवन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है । ३७०० सातवीं पृथिवीमें मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है। उससे यस्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उम्र से सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे हास्य और रति जघन्य स्थितिउदीरणा संख्यातगुणी है। उससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे सोलह कषायकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक हैं । 1 ६७०१ तिर्यों में मिध्यात्व और सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है । उसे स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे पुरुषवेदको जयन्य स्थितिउदीरणा संख्यातगुणी हैं। उससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे अरति और शोककी जघन्य स्थिर विशेष अधिक है। उससे नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे सोलह कषायकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति

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