Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 327
________________ ร ३१४ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ सोलसक० - पंचणोक० उक डिदिउदी० विसेमा० । सम्मामि० उक्क० डिदिउदी० विसेसा० | सम्म० - मिच्छ० उक० हिदिउदी० त्रिसेसा | अणुद्दिसादि सच्चड्डा त्ति सव्वत्थो० अरदि-सोग० उक्क० डिदिउदी० । बारसक० - पंचरणोक० उक्क० हिदिउदी ० विसे० | सम्म० उक्क० डिदिउदी० विसेसा० । एवं जाव० । 10 श्री ० ६९७. जण्णए पयदं । दुविहो शि० - श्रीवेण आदेसेण य । श्रोषेण सन्वत्थोवा मिसाउदा० । जडिदिउदीर असंखे० गुणा । इस्स-रदि० जह० द्विदिउदी० असंखे० गुणा । घरदि-सोग० जह० डिदिउदी ० विसेसा० । भय-दुर्गुछा० जह० विदिउदी० विसे० । बारसक० जह० डिदिउदी० विसेसा० । सम्मामि० जह० डिदिउदी० संखे० गुणा । Q १६९८. देसेण खेरइय० सव्वत्थोवा मिच्छ० सम्म० जह० हिदिउदी० । जट्टिदिउदी० असंखे० गुणा सम्मामि० जह० डिदिउदी० असंखे० गुणा | इस्स-रदि० जह० डिदिउदी० संखे० गुणा । अरदि-सोग० जह० ड्रिदिउदी० विसेसा० । स ० *** उन ५०.. इस्रोना एवं पढमाए । Site है। उससे सोलह कपाय और पाँच नोकषायकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है । उससे सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिदीर विशेष अधिक है। उससे सम्यक्त्व और मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवों में परति और शोककी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है। उससे बारह कपाय और पाँच नोकपायकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक हैं। उससे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । $ ६६७, जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका हैं— श्रघ और आदेश । श्रघसे i मिध्यात्व, सम्यक्त्व, चार संज्वलन और तीन बेदको जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्थि स्तोक है। उससे स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे हास्य और रतिको जघन्य थोड़े स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे अति और शोककी अधन्य स्थितिउदीरणा विशेष और है। उससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे बारह कषायकी जघन्य स्थिति उदीरणा विशेष अधिक है। उससे सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा संख्यातगुणी है । ६८. देशसे नारकियोंमें मिध्यात्व और सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है। उससे स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है । उससे सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। उससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणा संख्यातगुणी है। उससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे नपुंसकवेदी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। इसीप्रकार पहली पृथिवी में जानना चाहिए ।

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