Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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अयघवलासहिये कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
डिदिउदी० जीवा अनंतगुणामाजिक-सम्भावित डिदिउदी० जीवा । अणुक० डिदिउदी० जीवा श्रसंखेअगुणा । एवं तिरिक्खा० । • पुरिसवे० सव्त्रत्थो० उक०
६ ६९३. सब्बणेरड्य० सन्वपंचिदियतिरिक्ख मनुसप्रपञ्ज०- देवा जाव अवराजिदा ति सव्वपय० सव्वत्थोवा उक० हिदिउदी० जीवा । ऋणुक० हिदिउदी० जीवा श्रसंखे० गुणा | मणुसेसु सम्म० सम्मामि० इथिवे ० पुरिसके० सव्वत्थोचा उक० डिदिउदी० जीवर | अणुक्क० हिदिउदी० जीवा संखे० गुणा । सेसपयडीणं सव्वत्थोवा उक्क० डिदिउदी० जीवा । अणुक० डिदिउदी० जीवा यसंखे० गुणा । मणुसपज०मसिपी- सव्वदेवे सव्त्रपय० सव्वत्थोवा उक्क० हिदिउदी० । अणुक० डिदिउ दी० जीवा संखे० गुणा । एवं जाव० ।
१६९४, जह० पदं दुविहो णि० - प्रघेण आदेसेण य । श्रघेण मिच्छ०चदुसंजल ० - चुंस० - चदुणोकसाय० सव्वत्थोवा जह० द्विदिउदी० जीवा । अजह० हिदिउदी० जीवा असंतगुणा । सम्म० सम्मामि० बारसक- ० इत्थवे ० पुरिस०-भयदुर्गा० सव्त्रत्थोश जह० हिदिउदी० जीवा । अजह० डिदिउदी० श्रसंखेज गुण | तिरिक्खेसु मिच्छ० - सय ० चदुणोक० सव्वत्थोवा जह० डिदिउदी० जीवा । श्रज० डिदिउदी० जीवा प्रणतगुणा । सम्म सम्मामि० सोलसक० - मय दुगु० - इत्थि वेद०
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स्थिति उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं । सम्यक्त्य, सम्यग्मिध्यास्त्र, स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं | उनसे अनुकृष्ट स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए।
६ ६६३. सब नारकी, सत्र पञ्चेन्द्रिय तिर्यन, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजित विमानतक के देवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्वोक हैं। नसे अनुत्कृष्ट स्थिति प्रदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यों में सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व,
वेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धि देवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार अनाहारक मार्गशासक जानना चाहिए ।
§ ६६४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रोसे मिध्यात्व, चार संज्वलन, नपुंसकवेद और चार नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अजघन्य स्थिति के उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अजघन्य स्थितिके बदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। तिर्यखों में मिध्यात्व नपुंसकवेद और चार नोकषायकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य स्थितिके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय,