Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 319
________________ गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ३०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे 1 [वेदगो । ६८२. तिरिक्खेसु पिच्छ०-सत्तणोक० जह• टिदिउदी० जह० एयस०, उक्क ० श्रावलि. असंखे०भागो। अजह सब्बद्धा । सोलसक०-भय-दुगुला० जह. अजह. द्विदिउदी. सनद्धा। सम्म-सम्मामि० श्रोधं । पंचि०निरिक्खतियः दसणतियमोघं । सेसपय० जह. जह० एयस०, उक्क, आवलि० असंखे भागो । अजह सब्बद्धा। णवरि जोणिणीसु सम्मत्त० मिच्छत्तभंगो। पंचिंतिरि०अपन० ...' सचपय० जह. द्विदिउदी. जह० एयसमओ, उक्क, आवलि. असंखे० भागो । अजह सव्वद्धा। ६६८३. मणुसेसु मिच्छ ०-सम्म०-चदुसंजल-सत्तणोक. जहविदिउदी० जह० एयस०, उक्क० असंखेजा समया । अजह सव्वद्भा । बारसक०-भय-दुगुंडा० जह० हिदिउदी जह० एपसमयो, उक्त आवलि असं० भागो । अजह सव्वद्धा । सम्मामि० जह. जह• एयस०, उक० संखेजा समया । अज० जह• उक० अंतोमुहुखं । मणुसपज्ज ०-मणुसिणी० सयपयडी० जह• विदिउदी. जह• एगसमो, उक० संखेज्जा समया । अजह० सम्बद्धा । णवरि सम्मामि० मणुमोघं । मणुस विशेषार्थ-इसके पूर्व जो स्पष्टीकरण किया है उसे और साथ ही अपने-अपने स्वामित्वको ध्यानमें लेनेपर सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजधन्य स्थितिबदीरणाका माना जीवोंकी जो अपेक्षा काल कहा है वह समझमें आ जाता है, इसलिए यहाँ और आगे अलगसे खुलासा नहीं किया। ६८२, तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जश्न्य काल एक समय है, और उत्कृष्ट काल पावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके दीरकोंका काल सर्वदा है। सोलह कपाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओषके समान है। पन्चेन्द्रिय निर्यञ्चत्रिकर्म दर्शनमोहनीयत्रिकका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पालिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि योलिनियों में सम्यक्त्यका भंग मिथ्यात्वके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों में सब प्रकृतियों की जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रालिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्चदा है। ६६८३. मनुष्यों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, पार संज्वलन और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात समय है। भजधन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पावलि के असंख्यातय भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। सम्यग्मिथ्यात्यकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ण काल संख्यात समय है। अजघन्य स्थिति के उदीरकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्स है। मनुष्य पर्याप्त और मनुध्यिनियोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल

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