Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयंधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
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३६७८. श्राणदादि जाय राववज्जा त्ति सव्वपय० उक० जह० एयस०, उक० संखेज्जा समया । अशुकः सव्वद्धा । णवरि सम्मामि० अणुक० जह० अंतोमु०, उक० पलिदो० श्रसंखे भागो । अदिसादि सच्चा ति सव्यपय० उक० जह० एयस०, उक्क० संखेज्जा समया । क ६६७९. जहण पद । दुविहो णि०-मार्गदर्शकणार्या महाराज मिच्छ० चदुणोक० जह० हिदिउदी० जह० एस० उक्त० आवलि० असंखे ० भागो, - ओषेण आदेसेण य । श्रोण अज० सव्वद्धा । एवं सम्मामि० । वरि अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो ० श्रसंखे० भागो । सम्म० चदुसंजल० - तिष्णिवेद० जह० हिदिउदी० जह० एस ०, संखेज्जा समया । जह० सच्चद्धा । बारसक० भय-दुर्गुछा० जह० अजह० सव्वद्धा ।
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उक्क०
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६६७८, मानवकल्पसे लेकर नौ मैवेयकतक के देवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरकों का जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल संख्यात समय उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिके | अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरकों का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाा है | अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंका काल सदा है । इसीप्रकार श्रमाहारक मार्गणातक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ - नौ मैवेयकसे लेकर उक्त सब देवों में मनुष्यत्रिक ही मरकर जन्म लेते हैं और उनका प्रमाण संख्यात है। यही कारण है कि इनमें अपनी-अपनी उदीरणा प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय प्राप्त होनेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है ।
६७. जघन्य का प्रकरण हैं। निर्देश दो प्रकारका है - श्रोष और आदेश । श्रोघसे मिथ्यात्व और चार नोकपायोंकी जघन्य स्थिति के उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार सम्यग्मध्यात्य प्रकृतिकी शपेक्षासे जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अजघन्य स्थिति के उदीरकों का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है । सम्यक्त्व, चार संज्वलन और तीन वेदकी जघन्य स्थितिके दीरकोंका जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय हैं । जघन्य स्थितिके atraint काल सर्वदा है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य स्थिति उदीरकों का काल सर्वदा है ।
विशेषार्थ - मिथ्यात्व और चार नोकषायोकी जघन्य स्थितिउदीरणाके स्वामित्वको ध्यानमें लेनेपर ऐसे नाना जीव लगातार यदि इनकी जघन्य स्थितिउदीरणा करें तो उस कालका योग भावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है। यहीं कारण है कि इनकी जघन्य स्थितिके उदीरकों का उत्कृष्ट काल उक्तप्रमाण कहा है। इसीप्रकार सम्यग्मिध्यास्त्र प्रकृति के विषय में जान लेना चाहिए। सम्यक्त्व, चार संज्वलन और तीन वेदों की जघन्य स्थितिउदीरणा करनेवाले जीव ही अधिक-से-अधिक संख्यात हो सकते हैं । यदि त्रुदत्