Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] उत्तरपयविद्विदिग्दोरणाए पोसणं
२९ ६६६७. आदेसेण रहय० मिच्छ-सोलसक०-सत्तणोक. जह० अजह. लोग० असंखे० भागो छचोइस० । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह० खेत्तं । एवं जघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन मात्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है । तथा इनकी अजघन्य स्थिति उदीरणा एकेन्द्रियादि जीवों के भी होती है, इसलिए इनकी अजघन्य स्थितिके उदीरकों का सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन प्राप्त होता है। इनकी जघन्य और अजघन्य स्थिति के उदोरकों का, क्षेत्र भी क्रमसं लोकके असंख्यात● भागप्रमाण और सर्व लोक है, अतः यहाँ इनकी जघन्य और अजयन्य स्थिति उदारकाका स्पशनाक्षात्रक समान कहा है । मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थिति के उदीरकोंका स्पर्शन तो उनके क्षेत्रके समान सर्व लोक ही है। मात्र जघन्य स्थिति के उदीरकोंके स्पर्शनमें फरक है। बात यह है कि मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति उदीरणा उपशमसम्यक्त्वके सन्मुख हुश्रा जीव प्रथम स्थिति में एक समय अधिक एक प्रावलिप्रमाण स्थिनिके शेष रहनेपर करता है, यतः ऐसे जीवोंका अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागोमसे कुछ कम आठ भागप्रमाण प्राप्त होता है अतः मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिके उदीरकों का वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रस्नालीके चौदह भागों में से कुछ कम
आठ भागप्रमाण कहा है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदारणा अपने स्वामित्वके अनुसार बादर एकेन्द्रिय जीव करते हैं, यतः इनका स्पर्शन लोकके संख्यातवें मागप्रमाण है, अतः उक्त प्रकृतियों की जघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इनकी अजघन्य स्थिति के उदीरकोका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। सम्यक्स्यकी जघन्य स्थिति उदीरणा दर्शनमोहनीयका क्षपक जीव सम्यक्त्वकी स्थितिके एक समय अधिक एक आवलि शेप रहनेपर करता है। यतः ऐसे जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, क्षेत्र भी इतना ही है, अतः इसे क्षेत्रके समान कहा है। वेदकसम्यग्दृष्टियों के स्पर्शनको देखते हुए सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिके उदीरकों का वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातचे भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन असनालीके चौदह भागोंमसे कुछ कम आठ भागप्रमाण कहा है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरण। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जी करते हैं, अतः उनके स्पर्शनके अनुसार सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीर कोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन वसनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण कहा है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति उदीरणा उपशामफ या ज्ञपकके यथासम्भव होती है। यतः ऐसे जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान ही होता है, अत: इनकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। तथा इनकी अजघन्य स्थितिजदीरणा तिर्यञ्चादि तीन गतिमें भी सम्भव है। इसी तथ्यको ध्यानमें रखकर इनकी अजघन्य स्थिलिके उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागों से कुछ कम पाठ भाग और सर्व लोकप्रमाण कहा है। आगे चारों गतियोंमें और उनके अवान्तर भेदोंमें अपने-अपने स्वामित्वको और स्पर्शनको जानकर प्रकृतमै स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। कोई विशेष न होनेसे यहाँ उसका अलगसे निर्देश नहीं किया है।
६६७. प्रादेशसे नारकियों में मिथ्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकषायोंकी जयन्य और अजघन्य स्थितिक उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसीप्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर