Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[वेदगो ७ ६६१. आदेसेणे णेरड्य० मिच्छ०-सोलसक० सत्तणोक० उक० अणुक. लोग० असंखे०भागो छचोदस० । मुम-सम्मामि० उक० अणुक० खेत्तं । एवं बिदियादि सत्तमा ति । वरि सगपोसणं कायव्वं । पढमाए खेतं ।
६६६२. तिरिक्खेसु मिच्छ०-सोलसक०-रणवुस-अरदि-सोग०-भय-दुगुछा० उक्क डिदिउदी० लोग० असंखे०भागो छचोदस० । अणुक० सव्यलोगो । हस्स-रदि० उक्क० ट्ठिदिउदी० लोग० संभामो भवणुकश्वासनलीगीएवमिास्य-पुरिसवे०। णवरि अणुक० लोग. असंख० भागो सबलोगो वा | सम्म० उक० डिदिउदी
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है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा अपने स्वामित्वके अनुसार मनुष्य, तिर्यञ्च और देवगतिके जीव करते हैं । यतः इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यात भागप्रमाण और प्रतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ पाठ भागप्रमाण ही बनसा है, अतः इनकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। किन्तु इन कोकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाको अपेक्षा विचार किया जाता है तो उक्त स्पर्शनके साथ सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन भी बन जाता है, अतः इन कर्मों की अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भाग और सर्व लोकप्रमाण कहा है। नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा अपने स्वामित्वके अनुसार यतः चारों गति के जीव करते हैं, अतः इस प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिउदीरकों का वर्तमान स्पर्शन लोकक असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सनालीके चौदह भागोंमेंसे मध्यलोकसे नीचे छह और ऊपर सात इसप्रकार कुछ कम तेरह भागप्रमाण घननेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। नपुसावेदकी अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सर्व लोकमें पाये जाते हैं, इसलिए वह सर्च लोकप्रमाण कहा है। भागे चारों गतियों और उनके भवान्तर भेदामें स्पर्शनका विचार अपने-अपने स्वामित्व और स्पर्शनको जान कर घटित कर लेना चाहिए । सुगम होनेसे उसका हमने अलगसे निर्देश नहीं किया है।
१६६१. 'प्रादेशसे नारकियों में मिथ्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ठ स्थितिके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनाली के चौदह भागों में कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । इसीप्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवी पृथिवीतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । पहिली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है।
६६६२. तिर्यश्चों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और उसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। हास्य और रतिको उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शच किया है। इसीप्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा स्पर्शन जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातर्फे
1. ता०प्रती सम्पन्चोगो ।.....'आयसेवा इसि पाठः ।