Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] उत्तरपडिटिदिउदोरणाए सरिणयासो
२७३ सिया उदी० । जदि उदी० णिय० उक्क० । रदि-पुरिसवे० णिय. उदी०, णिय० उकास्सं । एवं रदीए।
५८७. अरदि० उक्क० द्विदिमुदी० मिच्छ ०-सम्मा०-सोलसक०-भय-दुगु० सिया उदी । जदि. उदी, णिय. अणुक० असंखे०भागही । पुरिसवे० पिय. उदी०, णिय० · अणुक्क • असंखे०भागही । सोगं णिय. उदी०, णिय० उक० । एवं सोग।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ५८८. भय उक्क० द्विदिमुदी० मिच्छ० - सम्म० - सोलसक० -हस्स-रदिपुरिभवे० अपञ्चक्खाणभंगो। दुगु'छा० सिया उदी० । जदि उदी०, गिय० उकस । एवं दुगुकाए ।
५८१. पुरिसवेद० उक्क० हिदिमुदी० मिच्छ०-सम्म०-सोलसक०-भय-दुगुहा० सिया रदी । जदि उदी०, णिय० उक्कस्सं । हस्स-रदि० णिय उदी०, णिय० उकस्सं ।
१५९०. अणुद्दिमादि सब्वट्ठा ति सम्म उक्क० द्विदिमुदीरे० बारसक-भयदुगुंछा० सिया उदी० 1 जदि उदी. गिय० उक० । हस्स-रदि-पुरिसवे. णिय. उदी०, णिय० उक्कस्सं ।
भय और जुगुप्साका कदाचित् बदीरक है। यदि उदोरफ है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। रति और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार रतिकी उत्कृष्ट स्थितिकी जदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
६५८७. अरतिकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि अदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भागहीन अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। पुरुपयेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे 'असंख्यातवें भागहीन अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। शोकका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसी प्रकार शोककी उत्कृष्ट स्थितिकी उदारणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
F५८८. भयकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीवके मिथ्यात्व, सम्यक्त्र, सोलह कषाय, हास्य, रति और पुरुषवेवका भंग अप्रत्याख्यानावरणके समान है। जुगुप्साका कद चित उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
६५८९, पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदोरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरफ है । हास्य और रतिका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है।
५६०. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव बारह फपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उनीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। हास्य, रति और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है।