Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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२८० अयधवलासहिदे कसायशाहुडे
[ वेदगो समयुत्तरमादि कादरण जाब आलियम्भहिया । इस्स-रदि-अरदि-सोग शिया उदी० । जदि उदी०, णिय. अजह "असख भागमः । एवं यण्णारसक० । णमयवेदहस्स रदि-अरदि-सोग० पिरयोघं । भय-दुगुंछा रिणरयोधं | णवरि सोलसक० सिया उदी० | जदि उदी०, जहण्णा वा अजहण्णा वा । जहरणादो अजहरणा तिहारणपदिदा असंखे०भागभ० संखे० भागब्भ० संखेन्गुणब्भहिया वा।
६१३. तिरिक्खेसु मिच्छ० जह० द्विदिउदी० सोलसक०-णवणोक० सिया - उदी० | जदि उदी०, णिय. अजह. संखे गुणम्भः । एवं सम्मामि० । णवरि अणंताणु० चउकं णस्थि । एवं सम्मत्तं । गवरि पुरिसवेदं धुवं कायब्वं । सोलमक० सत्तमाए भंगो।
३६१४. इथिवेद. जह. हिदिउदी० मिच्छ० णिय उदी० णिय० 'अजह. असंखे गुणब्भ० । सोलसक०-भय-दुगुंछा० सिया उदो० । जदि उदी०, णियमा अजह० संखेजगुणम्भ । हस्स-रदि-अरदि-सोगः सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० अजहण्णा संखे०गुणब्भहिया | एवं पुरिसके । मावलि अधिक तककी अजघन्य स्थितिका बदीरक है। हास्य, रति, अरति और शोकका कदाचित् उदीरक है । यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्या भाग अधिक अजघन्य स्थितिका उदारक है। इसीप्रकार पन्द्रह कषायकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । नपुसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर ... सन्निकर्षका भंग सामान्य नारकियों के समान है। भय और जुगुप्साकी जयन्य स्थितिसदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्षका भंग सामान्य नारकियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि सोलह कषायका कदाचित् उदीरक हैं। यदि उदीरक है तो जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है । यदि अजघन्य स्थितिका बदीरक है तो जबन्यकी अपेक्षा असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणा अधिक त्रिस्थानपतित अजन्य स्थितिका उदीरक है।
६६१३. तिर्यञ्चोंमें मिध्यात्व की जन्य स्थितिका उदोरक जीव सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदोरक है। यदि उदोरक है तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार सम्यग्मिध्यात्लकी जघन्य स्थिति उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उदीरणा नहीं है। इसीप्रकार सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्प जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके पुरुषवेदकी उदीरणाको ध्रुव करना चाहिए । सोलह कषायकी जयन्य स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर भंग सातवीं पृथिवीके समान जानना चाहिए।
६६१४. स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। सोलह कषाय, भय और : जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। हास्य, रवि, अरति और शोकका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है सो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजधन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार पुरुषवेदकी जघन्य स्थिसिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्प जानना चाहिए ।