Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा• ६२] उत्तरपडिद्विदिवदीरणाए सरिणयासो
२५ जहण्णादो अजहण्णा मिट्ठाणपदिदा असंखे भागभ० संखे भागन्भहिया वा । दुगु'छा० सिया उदी । जदि उदी, णिय० जहपणा । एवं दुगुना० ।
६६२८. एवं भवण-वाण णवार सम्म सम्मामिच्छत्तमोजा महाराज
६२९. जोदिसि० मिच्छ०-सम्मत्त-सम्मामि०भवणवासियभंगो । अणंतागु०कोध० जह० हिदिउदी० मिच्छ० णिय उदी. णिय. अजहअसंखे गुणभहियं । तिण्हं कोधाणं णिय. उदी. णिय. अजह. असंखे०भागब्भ । अट्ठणोक० सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० अज० असंखेनभागब्भ० । एवं तिएहं कसायाणं |
६३०. अपश्चक्खाशकोह० जहरू विदिउदी० दोण्हं कोधाणं णिय० उदी. णिय० जहण्णा । अहणोक सिया उदी० । जदि उदी०, णिय. जहएणा । सम्म० णिय० उदी० णिय० अज० संखे गुणब्भ । एवमेकारसक० ।
१६३१. हस्सस्स.जह. द्विदिउदी. बारसक-भय-दुगुंछा०-इथिवे०-पुरिसके० सिया उदी० । जदि उदी०, थिय० जहण्णा | सम्म० अपञ्चक्खाणभंगो । रदि णिय. उदी णिय. जहण्णा । एवं रदीए । एवमरदि-सोग । असंख्यात भाग अधिक या संध्यातवें भाग अधिक द्विस्थानपतित अजघन्य स्थितिका उदीरक है । जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है । यदि उदीरक हैं तो नियनसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्प जानना चाहिए।
६६२८. इसीप्रकार भवनवासी और व्यन्तर देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वका भंग सम्यग्मिध्यात्त्रके समान है।
६६२६. ज्योतिषी देवों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग भवनवासियोंके समान है। इनमें अनन्तानुबन्धी क्रोधकी अघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। तीन क्रोधीका नियमसे उदारक है जो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरफ है। आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक अजधन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार तीन कषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सनिकर्ष जानना चाहिए।
१६३०. अप्रत्याख्यान क्रोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव वो क्रोधों का निययसे दीरक है जो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। पाठ नोकषायोंका कदाचिन उदीरक है। यदि उनीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। सम्यक्त्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे संख्यानगुणी अश्विक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार ग्यारह कपायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्त्रिकप जानना चाहिए ।
६६३१. हास्यकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव बारह कपाय, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद और पुरुपवेदका कदाचित उदीरक है। यदि चीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसके सम्यक्त्वका भंग अप्रत्याख्यानके समान है। रतिका नियमसे नदीरक है जो नियमसे जन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार रतिकी जयन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष