Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
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समयुत्तरमादि कारण जान पलिदो० श्रसंखे० भागन्भ० । भय-दुगुंडा० सिया उदी० । जदि उदी०, निय० जहणा इत्थवे पुरिवेशमिया उदी० । जदि उदी०, मार्गदर्शक :- अरचार्य श्री सुवासीगर श्री महाराज निय ० जह० यस० भागमः । हस्स-रदि निय० उदी० लिय० जह० श्रसंखे०भाग भ० । एवं पण्णारसक० ।
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३६२५. इस्थिवे० जह० डिदिउदी० मिच्छ० प्रणताणु० मंगो | सोलसक०भय-दुगु छा० चदुयोक० सिया उदी० । जदि उदी०, गिय० जह० संखे० गुणभ० । एवं पुरिसवेद० ।
$६२६. हस्सस्स जह० डिदिउदी० वेदभंगो । इत्थवेद० - पुरिसवे० सिया उदी पदिदा असंखे० भागन्भ० संखे० गुण०म० । एवं रदीए। एवमरदि-सोग० ।
मिच्छ० सोलसक० -भय-दुगु छा० इस्थि। जदि० उदी०, निय० अजह० चिट्ठाण - रदि० शि० उदी० वि० जहण्णा ।
६६२७. भय० जह० विदिउदी० मिच्त्र० - इत्थिवेद० - पुरिसवे ० - हस्स-रदि० श्रताणु० मंगो | सोलसक० सिया उदी० । जदि उदी०, जहण्णा वा श्रजह० वा ।
जन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है । यदि अजघन्य स्थितिका उदीरक है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिक से लेकर पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक तककी अजयन्यस्थितिका उदीरक है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीर है तो नियमसे असंख्यात भाग अधिक जघन्य स्थितिका उदीरक है। हास्य और रतिका नियमसे उदीरक है जो नियमसे श्रसंख्यातवें भाग अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है । इसीप्रकार पन्द्रह कषायकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
३६२५. स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीवके मिथ्यात्वका संग अनन्तानुबन्धी के समान | सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा और चार नोकषायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदोरक है तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजयन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१ ६२६. हास्यकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीवके मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका मंग स्त्रीवेदके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक द्विस्थानपतित
जघन्य स्थितिका उदीरक है। रतिका नियमसे उदीरक है जो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है । इसीप्रकार रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणा को मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए तथा इसीप्रकार अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
६६२७. भयकी जघन्य स्थिति के उदरीक जीवके मिध्यात्व, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य और अरतिका भंग अनन्तानुबन्धी के समान है | सोलह कषायका कदाचित् उदरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य या अन्य स्थितिका उदीरक है। यदि श्रजवन्य स्थितिका उदीरक है तो नियमसे
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