Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवला सहिदे कसाय पाहुडे
[ बेदगो ७
सिया उदी० । जदि उदी०, निय० जह० असंखे० भागव्य० | णवरि पञ्ज० इत्थवेद० णत्थि । जोगिणीसु इत्थिवेदो ध्रुवो कायव्वो ।
६ ६१७. पंचिदियतिरिक्खश्रपज ० - मणुस प्रपञ्ज० मिच्छ० जह० डिदिउदी - सोलसक० -भय-दुर्गुछा० सिया उदी० । जदि उदी०, जहण्णा वा अजहण्णा वा । जह० जह० समयुत्तरमादि काढूण जाव पलिदो० श्रसंखे० भाग०भ० । इरूस-रदिअरदि-सोग० सिया उदी० । जदि उदी०, शिय० जह० असंखे० भाग०म० । एवं ण स० | वरि णिय० उदी० ।
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$६१८. अणताणु कोध० जह० विदिप्रदी० मिच्छ० तिन्हं कोधाणं णिय उदी०, जह० जह० | जह० जह० समयुत्तरमादि काढूण जाव पलिदो० असंखे०भागभ० । भय-दुगु छा० सिया उदी० । जदि उदी०, निय० जहण्णा । चदुणोक ०स० [मिच्छत्तमंगो | एवं पण्णारसक० ।
९६१९. इस्सस्स जह० हिदिउदी० मिच्छ०-ण स० णिय० उदी० निय० अजह० संखे० गुण म० । एवं सोलसक० -भय-दुगु बा० | णवरि सिया उदी । रदिं
तिर्यखों के समान है । इतनी विशेषता है कि वह सात नोकषायों का कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरको कम चासंगीत में मिलियस धान्य स्थितिका उदीरक हैं। इतनी विशेषता है कि पर्यातकों में स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है । योनिनियोंमें स्त्रीवेदकी उदीरणा ध्रुव करना चाहिए ।
३६१७. पश्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव सोलह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है। यदि अजघन्य स्थितिका उदीरक है तो जघन्य की अपेक्षा एक समय अधिक से लेकर पल्य के असंख्यातवें भाग अधिक तककी भजघन्य स्थितिका उदीरक हैं । हास्य, रति, अरति और शोकका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक हैं तो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है । इसीप्रकार नपुंसककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसका नियमसे उदीरक है ।
६१८. अनन्तानुबन्धी कोधकी जघन्य स्थिविका उदीरक जीव मिध्यात्व और तीन क्रोधों की नियमसे जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक हैं। यदि भजघन्य स्थितिका उद्दीरक है तो जवन्यकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पत्य के असंख्यातवें भाग अधिक तककी अजघन्य स्थितिका उदीरक है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है । चार नोकषाय और नपुंसकवेदका भंग मिध्यात्वके समान है । इसीप्रकार पन्द्रह कषायकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्षं कहना चाहिए |
६६१६. हास्यकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिथ्याव और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे संख्यातवें भाग अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनका कदाचित उदीरक है। रतिका नियमसे उदीरक है जो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है ।