Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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मार्गदर्शक :- आचार्य वषसिंहये कसाया पराज
[ वेदगो ७
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१५९१. अपच्चक्ख. कोह उक्कत्स० डिदिमुदी० सम्म० - दोकोध-हस्स-रदिपुरिमवेद० णियः उदी०, णिय० उकस्सं । भय-दुगुं श० सम्मत्तभंगो । एवमेकारसक० ।
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९ ५९२. हस्सस्स उकः डिदिमुदी० सम्म० र दिपुरिसवेद० निय० उदीर०, सिय० उकरूपं । बारसक० -भय-दुगु छा० सम्मत्तमंगो | एवं रदीए ।
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६५९३. अरदि उक० डिदिमुदी० सम्म० पुरिस वे खिय० उदीर, जिय० क० असंखे० भागही | वारसक० -भय-दुगु ० सिया उदी० । जदि उदी० णिय० अणुक्क० असंखे० भागहीणं । सोगं जय० उदी०, निय० उकस्सं । एवं सोग० ।
१५९४. भय० उक्क० विदिमुदीरे० सम्मा०-हस्स~रदि- पुरिसके० रिणय० उदी० निय० उक्करसं । बार्सक० - दुगु छा० सिया० उदी० । जदि उदी०, निय० उक० । एवं दुगु छा० ।
३५९५. पुरिस० उक० डिदिमुदी० सम्म ०~हस्स-रदि० निय० उदी०, णिय० उक्करसं० । चारसक०-भय-दुगु छा० सिया उदी० । जदि० उदी०, गिय० उक० ।
१५३१. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीन सम्यक्त्व, दो क्रोध, हास्य, रति और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है । इसके भय और जुगुप्साका भंग सम्यक्त्वके समान है । इसीप्रकार ग्यारह कपायकी उत्कृष्ट ferfast उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
६५६२. हास्यकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव सम्यक्त्व, रवि और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक हैं जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक हैं। इसके बारह कषाय, भय और जुगुप्साका भंग सम्यक्त्वके समान है। इसीप्रकार रतिकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
६ ५६३, अरति की उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव सम्यक्त्व और पुरुषवेदका नियमसे दरक है जो नियमसे असंख्यातवें भागहीन अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। बारह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे श्रसंख्यातवें भागहीन अनुत्कृट स्थितिका उदीरक है। शोकका नियमसे उदीरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका aairs है । इसीप्रकार शोककी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष कहना चाहिए ।
$ ५६४. भयकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव सम्यक्त्व, हास्य, रति और पुरुषवेदका नियम उदीरक हैं जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उद्दारक है। बारह कषाय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
१५६५. पुरुषवेदक उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव सम्यक्त्व, हास्य और रतिका नियमसे उरक है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदोरक है
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