Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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उत्तरपयडिद्विदि उदीरणाए सविण्यासो
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० ६२. ]
एवं जाव० ।
मिच्छ०
०
$ ५९६. जण्णए पदं । दुविहो ०ि श्रषेण आदेसेण य । ओघेण १० जह० डिदिउदी० बारसक-ष्णोक० सिया उदी० । जदि उदी०, खिय अजह० संखे० गुण महियं । चदुसंजल० - तिण्णिवे० मिया उदी०, जदि उदी०, णिय० ज० असंखे०गुणन्महियं । एवं सम्म० सम्मामि० । वरि अनंतागु चकं णत्थि ।
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$ ५९७ अनंताणु ० कोच० जह० डिदिउदी० मिच्छ० को संजल० एस० शिथ० उदी० मार्गनिया : अज्ञात दोष को धारणं शिय० उदी०, जहण्णा वा श्रजहण्णा वा । जहण्णादो अण्णा समयुत्तरमादि काढूण जाय पलिदो ० असंखे० भागमहियं | हस्म-रदि-अरदि-सोग० सिया उदी० । जदि उदी०, यि ० अजः असंखे० भागम्भहियं । भय-दुर्गुछा० सिया उदी० । जदि उदी०, जद्दण्णा अहरण वा । जहणादो अजहरुणा समयुत्तरमादि काढूण जाय आवलियन् महियं । एवमेकारसक० ।
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०
९५९८. कोहमंज० जह० हिदिउदी० सेसाणमणुदीरगो । एवं तिन्हं संजलगाणं ।
इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ५१६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । घ मिथ्यात्की अन्य स्थितिका उदीरक जीव बारह कपाय और छह नोकषायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे संख्यानगुणी अधिक अजधन्य स्थितिका उदीरक है। चार संकलन और तीन वेदका काचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अन्य स्थितिका उदीरक है । इसीप्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्षं जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके उदीरकके अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी उदीरणा नहीं है ।
६. ५६७. अनन्तानुबन्धी कोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिध्यात्व, कोधसंज्वलन और संवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अन्य स्थितिका उदीरक है । दो धांका नियमसे उदरक है जो जघन्य वा श्रजघन्य स्थितिका उदरिक है । यदि अन्य स्थितिका उदीरक हैं तो जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिक से लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तककी अन्य स्थितिका उदीरक है। हास्य, रति, अरति और शोकका कदाचित् उदीरक है। यदि उदारक है तो नियमसे असंख्यातवाँ भाग अधिक अजघन्य स्थितिका प्रदीरक हैं। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है। यदि अजघन्य स्थितिका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिक स्थितिसे लेकर एक प्रावलि अधिक तककी श्रजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार ग्यारह कषायकी जघन्य स्थितिको उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए |
३५६८. कोपसंज्वलनकी अन्य स्थितिका उदीरक जीव शेष प्रकृतियोंका अनुदीरक