Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

View full book text
Previous | Next

Page 290
________________ गा० ६२] उत्तरपयश्चिद्विदिउदीरणाए सरिणयासो २४७ १६०२, आदेसेण णेरड्य० मिच्छ० जह० द्विदिउदी० सोलसक०-छण्णोक० सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० अज० संखे गुणब्भ | णस० णिय० उदी०, णिय० अजह. संखेन्गुणब्भ० । एवं सम्म० | णवरि अणंताणु०४ णस्थि । एवं सम्मामि । ६०३. अणताणु० कोध० जह० द्विदिउदी० मिच्छ० णिय. उदी०, णिय० अजह० असंखे गुणब्भ । तिण्डं कोधाणं जहण्णा बा अजहएणा वा । जहण्णादो अजहरणा समयुत्तरमादि कादण जाव पलिदो० असंखे भागभ० । अरदि-सोगणवूस० णिय० उदी०, णिय० अजह० असंखे भागभ० । भय-दुगुंछा० मिया उदी | जदि उदी, णिय० जहण्णा । एवं पण्णारसकसायाणमण्णमण्णस्म । ६०४. णबुंसयवेद० जह. द्विदिउदी० मिच्छ० णिय० उदी०, णिय. अजह० असंखेगुणब्भ० । सोलसक०-भय-दुर्गुला० सिया उदी० । जदि उदी०, णिय० अजह० संखेगणम । हस्स-रदि-अरदि-सोग० सिया उदी । जदि उदी०, णिय. अजह० विट्ठाणपदिदा असंख भागभः सखाजगुशी महिवयाह जी महाराज उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए । १६०२. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वको जघन्य स्थितिका उदीरक जीव सोलह कषाय और छह नोकषायोका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। नपुसकवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है । इसीप्रकार सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिकी उदीरणाको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अनन्लानुबन्धीचतुष्ककी उदारणा नहीं होती। इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिको उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्प जानना चाहिए। ६०३. अनन्तानुबन्धी कोधकी जवन्ध स्थितिका पदोरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जां नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। तीन क्रोधोंकी जघन्य या अजधन्य स्थितिका उदीरक है। यदि अजघन्य स्थितिका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिकसे लेकर पल्यके असंख्यातवं भाग अधिक तककी अजघन्य स्थितिका उदीरक है । अरति, शोक और नपुसकवेदका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक अजघन्य स्थिति का उदीरक है। भय और जुगुप्साका कदाचित् दीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार पन्द्रह कपायकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर परस्पर सन्निकर्प कहना चाहिए । ६.४. नपुसकवेदकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। सोलह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है ना नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है । हास्य, रनि, अरति और शोकका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे अमन्यात भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक इसप्रकार विस्थानपतित भजघन्य स्थितिका उद्दीपक है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407