Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 280
________________ गा० ६२] उत्सरपयविहिदिउदोरणाए सएिणयासो રદ્દ छम्मासं । इस्थिवेद-पुरिसवे० जह० अजह० णस्थि अंतरं । सोहम्मीसाण. इथिवे.. पुरिसवे. अस्थि । उवरि पुरिसवेदो चेव अस्थि । णवरि प्राणदादि गवगेवजा ति अणंनाणु०४ अज० जह० अंतोमु०, उक. सगहिदी देरणा । ५६९. अणुदिसादि सध्वट्ठा त्ति सम्म०-पुरिसवे. जह० अज. णस्थि अंतरं । बारसक०-छपणोकसाय० जह• णस्थि अंतरं । अज० जह० उक्क० अंतोमु०। एवं जाव०। । ५७०. सपिणयासो दुविहो--जह - उक० । उकस्से पयदं । दुविहो गि. ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० उक्क० द्विदिमुदीरतो सोलसक० सिया उदीर० सिया अणुदीर० । जदि उदीर० उक्कस्सा वा अणुकस्सा वा । उकस्सादो अणुक्कस्ता समयूणमादि कादण जाव पलिदोवमस्म असंखेञ्जदिमागेणूणा ति । इत्थिवेद०पुरिसके०-हस्स-रदि० मिया उदीर० सिया अणुदीर० । जदि उदीर० णियमा अणुकस्सा अंतोमुहुत्तणमादि कादृण जाव अंतोकोडाकोडि चि । णस० अरदिसोग०-भय-दुगुका० सिया उदीर० सिया अणुदीर० । जदि उदीर० उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयणमादि कादूण जाव वीसं सागरोवममार्गदर्शक :-"आचार्य स विडसागर . ... ... ... ... ... ... .... ...... .. . . . .. ... ... ... ... और पुरुषवेदकी जघन्य और अजवन्य स्थितिउदीरणाका अन्तर काल नहीं है। सौधर्म और ऐशानकल्पमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उदीरणा दोनों हैं। आगे पुरुषवेदकी ही उदारणा है। इतनी विशेषता है कि आनतकल्पसे लेकर नौ ग्रंवेयक तकके देवोंमें अनन्वानुबन्धीचतुष्ककी अजघन्य स्थिति उदीरणा जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। ६५६९. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवों में सम्यक्त और पुरुषवेदकी जघन्य और अजवन्य स्थिति उदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। बारह कपाय और छह नोकषायांकी जयन्य स्थिति उदोरणाका अन्तरकाल नहीं है। अजयन्य स्थिति उदारणाका जयन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ५७०, सन्निकर्ष दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-प्रोच और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करनेवाला जीप सोलह कपायका काचित् उदीरक होता है और कदाचित् अनुदीरक होता है। यदि उदीरक होता है तो उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है तो उस्कृष्टसे एक समय कमसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भाग कम तक अनुत्कृष्ट स्थिति का उदीरक होता है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, और रतिका कदाचित् उदीरक होता है और कदाचित् अनुदीरक होता है। यदि उदीरक होता है तो नियमसे अन्तर्मुहूर्त कम स्थितिसे लेकर अन्तःकोड़ीकोड़ीप्रमाण स्थिति तक अनुत्कृष्ट स्थितिका चुदीरक होता है। नपुंसकवेद, भरति, शोक, भय, और जुगुप्साका कदाचित् उहीरक होता है और कदाचित् अनुदीरक होता है। यदि उदीरफ होता है तो उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका उहीरक होता है तो उत्कृष्टस एक समय कमसे लेकर पल्यका

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