Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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मार्गचर्मक :- आचार्य श्री सुविधिलयमवलीसहिदकसायपाहुडे
[बेदगो जहा हस्स-रदीहिं तहा णेयव्यं । सोग णिय० उदी०, णिय० उकस्सं । एवं सोगः ।
। ५७५. भय० उक्क० द्विदिमुदी० मिच्छ ०-सोलमकल हम्स-रदि-अरदि-सोग. णस० भंगो। तिषिणवेद० हस्समंगो। दुगुंछ सिया उदी० । जदि उदी णिय. उक्क । एवं दुगुंछ । एवं सब्वणेरड्य० | णवरि णवु'स धुवं कादव्यं ।
५७६. तिरिक्स-पंचिंदियतिरिक्खतिये ओघं । णवरि पञ्ज. इथिवे. णस्थि । जोणिणीसु इस्थिवेदं धुब कादव्वं । मणुसतिय० पंचिं०तिरिक्खतियभंगो । देवाणमोघं । णवरि णस० गस्थि । एवं भवण०-दाणवें-जोदिसि ०-सोहम्मीसाणा त्ति । एवं सणकुमागदि जाव सहस्सारे त्ति । णवरि पुरिसके० धुवं कायब्वं । ___५७७. पंचिं०तिरि० अपज० मिच्छ० उक्क० द्विदि उदी० सोलसक०० छण्णोक० सिया उदी० । जदि उदी• उक्क० अणुक० वा। उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयणमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे भागेणूणा ति । एवं णवुस० | णपरि
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उस प्रकार ले जाना चाहिए। ग्रह शोकका नियमसे उदीरक होता है जो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। इसीप्रकार शोककी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको विवक्षित कर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
१.५७१. भयकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीवका मिथ्यात्य, सोलह कषाय, हास्य, रसि, . अरति और शोकके साथ सन्निकर्षका भंग नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीवको विवक्षित कर इन प्रकृतियोंके साथ कहे गये भंगके समान है। तीन वेदका भंग हास्य प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीवको विवक्षित कर इन प्रकृतियों के साथ कहे गये भंगके समान है। यह जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है। यदि उदीरक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। इसीप्रकार जुगुप्साकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाको विवक्षित कर सन्निकर्ष कहना चाहिए। इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुसकवेदकी जदीरणाको ध्रुव करना चाहिए।
६५७६. निर्यकच और पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिको आंघ के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में बीवेदकी उदीरणा नहीं है तथा योनिनियों में स्त्रीवेदकी उदीरणाको ध्रुव करना घाहिए। मनुष्यत्रिक पञ्चेन्द्रिय तिर्यत्रिकके समान भंग है । देषोंमें श्रोधके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं हैं। इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशानकल्पके देवोंमें जानना चाहिए । इसीप्रकार सनत्कुमारकल्पसे लेकर सहास्नारकल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदकी उदीरणाको ध्रुव करना चाहिए।
६५७७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों में मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक जीव सोलह कषाय और छह नोकपायोंका कदाचित् उदीरक होता है। यदि उदीरक होता है तो उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है । यदि अनुकृष्ट स्थितिका उदीरक होता है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कम स्थितिसे लेकर पल्यके असंख्यात भाग कम तककी अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। इसीप्रकार नपुसकवेदकी अपेक्षा भंग जान लेना चाहिए।