Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ जोणिणीयस्स वा उक्कस्सट्ठिदि बंधिऊण अंतोमुहुतं द्विदिधादमकादूण अपक्ष एसु उत्रवण्णल्लयस्स तस्स पढमसमय उबवण्णल्ल यस्स उक्क० द्विदिउदी० ।
६५२८. आणदादि एवमेवजा चि मि० मोलसक०-सन गोक० उक० डिदिउदी० कस्स ? अण्ण० दव्यलिंगी तप्पा योग्गुकस्सट्टि दिसंतकम्मिश्र पदमसमयउववरणलगो तस्स | वरि अरदि- सोग० तो मुहुत्त उवण्णल्लगो तस्स उक० द्विदिउदी० | सम्म उक्क० हिंदिउदी० कस्स १ अण्णद० तप्पाचग्गुकरसडिदिसंतकम्मि० वेदयसम्म इडि० पढमसमयउबवण्णल्लयस्थ । तस्सेवतोमुहुत्तेण सम्मामिच्छतं पडिवरणस्स पढमसमयसम्म मिच्छाइट्ठिस्स सम्मामि० उक० द्विदिउदी० । अदिसादि सट्टा चि सम्म० बारसक० - सत्तलोक० उक० इिंदिउदी० कस्स ? अण्णद० वेदयसम्माइट्ठी तप्पाश्रग्गक० द्विदिसंतकम्भि० पदमसमयउबवण्णल्लगो तस्स उक्क० डिदिउदी० | वरि अरदि-सोग० अंतोमुहुत्तोववरणल्लयस्स । एवं जात्र० | ५२९ जण पदं । दुवि। साईसी आषण श्री श्रीराज मिच्छ० जह० डिदिउदी० करम १ ऋणद० मिच्छाइट्ठिस्स उवसमसम्मत्ता हिमुहस्स समयाहियावलियगढमहिदिउदीग्गस्स तस्स जह० डिदिउदी ● G सम्म० जह० हिदिया मनुष्यनी या पचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिवाला जीव उत्कृष्ट स्थिति बांधकर स्थितिघात किये बिना अन्तर्मुहूर्त में उक्त अपर्याप्तकों में मरकर उत्पन्न हुआ है उसके वहाँ उत्पन्न होनेके प्रथम समय में उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है ।
साग
६५२८. नत कल्पसे लेकर नी मैवेयक तकके देवोंमें मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नाकषायों की उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा किसके होती है ? अन्यतर तत्मायोग्य उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मवाला जो द्रव्यलिंगी मरकर उक्त देवोंमें उत्पन्न हुआ है उसके वहाँ उत्पन्न होनेके प्रथम समय में उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है। इतनी विशेषता है कि जिसे वहां उत्पन्न हुए अन्तर्मुहूर्त हुआ है उसके भरति और शोककी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है | सम्यक्त्वका उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मवाला जो वेदकसम्यन्द्रष्टि जीव मरकर वहां उत्पन्न हुआ है उसके वहां उत्पन्न होनेके प्रथम समय में सम्यक्त्वक उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है । उसीके अन्तर्मुहूर्त में सम्यग्मिध्यात्वको प्राप्त होने पर प्रथम समयवर्ती उस सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवके सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिन के देवो में सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्मवाला अन्यतर जो वेदकसम्यग्दृष्टि जीव मरकर उक्त देवोंमें उत्पन्न हुआ है उसके यहाँ उत्पन्न होनेके प्रथम समय में उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती हैं। इतनी विशेषता है कि जिस उक्त जीवको वहाँ उत्पन्न हुए अन्तर्मुहूर्त काल गया है उसके अरति और शोककी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
६५२६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है— श्रोध और आदेश | ओघ मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा किसके होती है ? उपशमसम्यक्त्वके श्रभिमुख श्रन्यतर जो मिध्यादृष्टि जीव मिध्यात्वकी प्रथम स्थितिकी एक समय अधिक एक आवलि स्थिति शेष
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