Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयघवला सहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो
मार्गदर्शक अंतोसुकार्य श्री रगडिदी । अरदि-सोग० जह० विदिउदी ० जह० उक्क० एयस० । अज० जह० एस० उक० अंतो० ।
९ ५४३. बिदियादि जाव छडि त्ति मिच्छ० जह० डिदिउदी० जह० उक्क० एस० । श्रज० जह० अंतोमु०, उक्क० सगट्ठिदी। सम्म० जह० जह० उक्क० एयसमो । अज० जह० तो, उक्क० सगहिदी देखला । सम्मामि० श्रोषं । वारसक०छष्णोक० जह० द्विदिउदी० जह० उक्क० एयस० । अज० जह० एस ०, उक्क० अंतोमु० । श्रताणु०४ जह० जह० डिदिउदी० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । ग स० जह० द्विदिउ० जह० उक्क० एस० । अज० जहष्णुक्क० जहष्णुक्कस्सहिदी भाणियन्त्रा ।
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$ ५४४. सत्तमाए मिच्छत्त-एस० - अरदि सोग- सम्मामि० - हस्स-रदि० णिरयोगं । सम्म० जह० बिदिउदी० जह० उक्क० एस० । अज० जह० अंतामु०, उक्क०
".
काल एक समय है । श्रजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार प्रथम पृथिवी में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी स्थिति कहनी चाहिए। अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है
विशेषार्थ - अरति और शोककी अजघन्थ स्थितिउदीरणा प्रथमादि छह पृथिवियोंमें अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त कालतक ही होती है। यही कारण है कि प्रथम पृथिवी में उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है ।
: ४४३. दूसरीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मिध्यात्वको जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदीरणाका जवन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग श्रोध के समान है । बारह कपाय और छह नोकवायोंकी जघन्य स्थितिउराका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य स्थितिउदः रणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककां जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरण का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहना चाहिए ।
विशेषार्थ - इन नारकियोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्कके स्वामित्वको ध्यानमें लेनेपर इनकी जघन्य स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है, इसलिए यह उक्त कालप्रमाण कहा है।
५४४. सातवीं पृथिवीमै मिध्यात्व, नपुंसकवेद, अरति, शोक, सम्यग्मिथ्यात्व हास्य और रतिका भंग सामान्य नारकियोंके समान है । सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति का
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