Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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२५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुई
[ वेदगो ७ 3 ५५६. मणुमतिए पंचिंदियतिरिक्खभंगो । णवरि मणुसिणी० इस्थिवेद० मार्गदशक आचाचण्यास विराग संजोमहाराज
___ ५५७. देवगदीए देवेसु मिच्छ०-सम्म-अणंताणु ०४-सम्मामि० उक्क० विदिउदी० जह० अंतोमु०, उक्क० अट्ठारस सागरो० सादिरेयाणि। अणुक्क० जह० एयस०, सम्मामि० अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० सम्वेसिमेक्कत्तीसं सागरो. देसूणाणि । बारसक० उक० द्विदिउदी० जह० अंतोमु०, उक्क० अट्ठारसमागरो० सादिरेयाणि | अणुक्क० जह० एगम०, उक्क० अंतोमु० । एवं छण्णोक० | णवरि उक्क० जह० एयस०, अरदि-सोग० अणुक्क० जह• एगस०, उक्क. बम्मासं । इथिवे. उक. हिदिउदी० जह• एयस०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० देवणं । अणुक्क० जह० एयम०, उक्क० श्रावलिया । एवं पुरिसवे | णवरि उक्क डिदिउदी० जह० एयस०, उक्क. अट्ठारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि । एवं भवणादि जाव सहस्सार त्ति | णबरि सगढिदी भाणियया । णवरि भवण-बाणवें-जोदिसि०-सोहम्मीसाणेसु इस्थिवे. उक्क. विदिउदी० जह० एयस०, उक्क० तिणि पलिदो० देख
६५५६. मनुष्यन्त्रिक पञ्चेन्द्रियतियश्चोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियोंमें नीवेदकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषर्षार्थ—उपशमश्रेणिकी अपेक्षा मनुष्यिनियों में वीवेदकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त बन जानेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है।
६५५७. देवगतिमें देवों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूते है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अठारह सागर है। अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागर है। बारह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जधन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अठारह सागर है । अनुत्कृष्ट स्थितिजदीरणा का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार छह नोकषायोंके विषयमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। प्रारति और शोककी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिजदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचवन पल्य है। अनुत्कृष्ट स्थितिजदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक आवलि है। इसीप्रकार पुरुषवेदके विषयमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता । है कि इसकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अठारह सागर है। इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सहसार कल्पतकक देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म-ऐशानकल्प के देवोंमें स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति