Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
उत्तरपट्टिदिदीरणाम एयजीवेण अंतरं
२६३
गा० ६२ ]
उक० अंतो० ।
५६१. बिदियादि जान लट्ठि त्ति मिच्छ० सम्प्र० - सम्मामि० जह० हिंदी उदी० जह० पलिदो० असंखे० भागो, अज० जह० अंतोमु०, उक० दो पिस देखा । बारसक० छण्णोक० जह० पास्थि अंतरं । अजह० जह० एयस०, उके०
तोमु० | अनंतापु०४ जह० शात्थि अंतरं । अज० जह० एयस०, उक्क० सगट्टिदी देणा । णत्रु स० ज० जह० द्विदीउदी० पत्थि अंतरं । सत्तमाए रियोधं । णवरि सम्म० सम्मामिच्छत्तभंगो' ।
1
मा:-तिरिक्त्रािश्रणंता ०४ श्रघं वरि श्रताणु०४ अजह० जह० एस० मिच्छ० जह० जह० अंतोमु०, उक० दोह पि तिष्णि पलिदो० देणाणि | अपञ्चकखाण ०४ ओवं । अट्ठक० भय- दुगुंद्रा० जह० द्विदिउदी० जह० अंतोमु०, उक० असंखे लोगा । अज० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । इत्थिये० - पुरिसवे० जह० डिदिउदी० जह० पलिदो० श्रसंखे० भागो,
अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ।
९५६१. दूसरी से लेकर छठी पृथवीतकके नारकियों में मिथ्याल, सम्यक्त्व और सम्यमिध्यात्व की जयन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल पथके असंख्यातवें भाग मारा हैं, अंजघन्य स्थितउदीरणाका जवन्य अन्तरकाल अन्ममुहूर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । बारह कपाय और छद्द नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य स्थितिउदाररणाका जनन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहू हैं। अनन्तानुबन्धचतुष्ककी जवन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । अजवन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्वर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । नपुंसकवेदकी जघन्य और अजयन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। सातवीं पृथिवी में सामान्य नारकियों के समान भंग है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वका भंग सम्यग्निध्यात्वके समान है ।
५६२ तिर्यञ्चों में मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारका भंग श्रोध के समान हैं। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धी चारकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जनन्य अन्तरकाल एक समय है, मिध्यात्वकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और दोनोंका अत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्य है । अप्रत्याख्यानावरश्चतुष्कका भंग के समान है । आठ कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। जीवेद और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर
१ ता० अ० प्रत्योः जह० उक्क० इति पाठः ।
२ ० ० प्रत्यो वरि सम्मामिच्छुभंगो इति पाठः ।