Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 275
________________ जयधमलासहिदे कमात्रपाहुडे [ वेदगो ७ ६५६०. आदेसेण णेरइय० मिच्छ.-सम्मामि० जह• विदिउदी० जह० पलिदो० असंखे० भागो, अज० जह० अंतीमु०, उक्क. दोण्हं पि नेतीसं सागगे. देसूणाणि | एवं सम्म० । णवरि जह० णस्थि अंतरं । अणंताणु०४-हस्स-दि० जह० द्विदिउदी० णत्थि अंतरं । अज० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो. देसूणाणि | यारसक०-अदि-सोग०-भय-दुगुंछा जह• द्विदिउदी० णत्थि अंतरं । अजह० जह एयस०, उक. अंतोमु | 'स० जह० णत्थि अंतरं । अज. जह० उक्क० एयसभनी । एवं पढमाए | णवरि समर्शिदसणाहस क्षिविधिजागजही हाराज अन्तरकाल सुगम है। नपुसकवेदकी अजघन्य स्थितिउदीरणाके जघन्य अन्तरकालका स्पष्टीकरण स्त्रीवेदके समान कर लेना चाहिए । सौ सागरपृथक्व कालतक नपुसकवेदका उदय न हो यह सम्भव है, इसलिए इसकी अजघन्य स्थिति उदारणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागर. पृथक्त्वप्रमाण कहा है। हास्यादि चारकी जघन्य स्थितिउदीरणा अपने स्वामित्वको देखते हुए दूसरी बार वह कमसे कम पल्यके मसंख्यातवें भागप्रमाण कालके पूर्व नहीं प्राप्त हो सकती है, इसलिए इनकी अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल पल्यके 'असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । तथा जो बादर एकेन्द्रिय जीव हुनतमुत्पत्तिक होकर संज्ञी पश्चेन्द्रियों में उत्पन्न होने के अन्तमुहूर्त बाद इनकी जघन्य स्थितिदीरणा करता है वह पुनः इस अवस्थाको अधिकसे अधिक काल बाद यदि प्राप्त करे तो अनन्त काल बाद ही प्राप्त कर सकता है, क्योंकि संक्षी पञ्चेन्द्रियका उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है, इसलिए. इनकी अजन्य स्थिति उदारणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल उक्त काल प्रमाण कहा है। इनकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य . अन्तरकाल एक समय है यह तो स्पष्ट हो है। मात्र उत्कृष्ट अन्तरकाल जुदा-जुदा है। कारण कि हास्य-रतिका उत्कृष्ट अनुदीरणाकाल साधिक तेतीस सागर है और अरति-शोकका उत्कृष्ट अनुदीरणाकाल छह महीना है। यही कारण है कि हास्य-रतिकी अजवन्य स्थिति उदारणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक तेतीस सागर कहा है तथा अरति-शोककी अजघन्य स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना कहा है । शेष कथन सुगम है। आगे गतिमार्गगाके भेदोंमें अपने-अपने स्वामित्वके अनुसार इसे समझकर अन्तरप्ररूपणा घटित कर लेनी चाहिए। ६५६८. आदेशसे नारकियों में मिथ्यात्व और सम्पमिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल पल्पके असंख्यातवें भागप्रमाण है, अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर है। इसीप्रकार सम्यक्त्वके सम्बन्धमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अनन्तानुबन्धी चार, हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागर है। बारह कषाय, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदीररणाका अन्तरकाल नहीं है। अजवन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । नपुसकावेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तरकाल नहीं है। अजयन्य स्थिति उदीरगाका जवन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। इसीप्रकार प्रथम पृथिवीमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी स्थिति कहनी चाहिए | हास्य और रतिकी मजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य

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