Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 266
________________ २५३ गा० ३२] उत्तरपयविद्विविउदारणाए एयजीश्रेण कालो जह एयस०, उक० अंतोमु० । ५५१. अणुदिसादि सयट्ठा ति सम्म० जह• द्विदीउदी० जह• उक. एयस० | अज. जह• एयस०, उक्क. सगहिदी । पुरिसवेद० जह० हिदिउदी० जह. उक० एयस० । अजह० जहण्णुक० जहएणुकस्सद्विदी। बारसक०-छपणोक० जह० द्विदिउदी० जह० उक० एयस० । अज जह० एयस०, उक्क. अंतोमु० । एवं जाव० । जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-ज्योसिर्वियोमम्सम्बष्ट्रिातीमित्वमहाहाहे, इसलिए ममें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थितिउरिणाका जघन्य काल अन्तर्मुहर्त से कम नहीं प्राप्त होता, इसलिए वह अन्तर्मुहूर्त कहा है। तथा ज्योतिषियों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक पल्य है, इसे ध्यानमें रखकर इनमें सम्यक्त्वकी अजघन्य स्थिति नदीरणाका उत्कृष्ट काल तत्प्रमाण कहा है। किन्तु इसे कुछ कम ही जानना चाहिए । कारण स्पष्ट है । सहस्रार कल्पमें हास्य और रतिकी जघन्य और भजघन्य स्थितिउदीरणा ओवके समान बन जाती है इस बातको ध्यानमें रखकर इस कल्पमें हास्य और रतिका भंग श्रोधके समान कहा है। आमतकल्पसे लेकर नौ मवेयक तकके देवा में स्वामित्वके अनुसार सय प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य स्थिति उदीररणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल सनत्कुमारकल्पके देवोंके समान बन जाता है। मात्र यहाँ अपनी-अपनी स्थिति जाननी चाहिए। साथ ही इनमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य स्थितिमदीरणा अपने स्वामित्वके अनुसार भवके अन्तिम समयमें होती है, इसलिए इनमें अनन्तानुबन्धी चतुककी जघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य. और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। इनमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अजन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त स्पष्ट ही है। शेष कथन सुगम है। मात्र अपने-अपने स्वामित्वको जानकर काल घटित करना चाहिए। ६५५१. अनुदिशसे लेकर सार्थसिद्धितक के देवाम सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिवदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजधन्य स्थिति उदारणा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। पुरुषवेद की जघन्य स्थितिउदारणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणा का जघन्य और अत्कृष्ट काल अपनी-अपनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। बारह पाय और छह नोकषार्थीकी जघन्य स्थिनिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। विशेषार्थ—इन देवॉमें कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि जीव भी उत्पन्न होता है, इसलिए इनमें सम्यक्त्वकी जघन्य स्थिति उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अजघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय बन जानेसे वह उनप्रमाण कहा है । इसमें सम्यक्त्व. की अजघन्य स्थितिउदीरणाका उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी उत्कृष्ट भवस्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। अपने स्वामित्वके अनुसार इनमें पुरुपवेदकी जघन्य स्थिति उदारणा भवके अन्तिम समयमं प्राप्त होती है, इसलिए इनमें पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य भीर उत्कृष्ट काला एक समय कहा है। इनमें गुरुपवेदकी अजघन्य स्थितिउदीरणाका वन्य

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