Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura

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Page 254
________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज उत्तरपयडिहिदिउदीरणाए एयजीवेण कालो आवलिया० । अणुक्क० जह० एयस, उक्क० छम्मासं । अरदि-सोग०-णमय. उक० हिदिदी० जह• एयस०, उक० अंतोमु० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । वरि पस० अणंतकालमसंखेन्पो परियट्ट । -------...-...----- -- ----- उत्कृष्ट काल एक पावलि है। अनुस्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह महीना है। अरनि, शोक और नपुसकवेदकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त है। अनुरस्कृष्ट स्थितिउतीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। इतनी विशेषता है कि नपुसकवेदकी अमुत्कृष्ट स्थितिउदारणाका उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। विशेषार्थ...मिथ्यात्वी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक अन्तर्मुहर्त तक होता है। इसीप्रकार इसकी अनुत्कृष्ट स्थितका बन्ध कमसे कम अन्तर्मुहूर्त तक और अधिकसे अधिक अनन्त काल तक होता है। इसीसे इसकी उत्कृष्ट स्थितिबदीर शाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त तथा अनुत्कृष्ट स्थितिदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्गलपरिवर्सनप्रमाण अनन्त काल कहा है। जो मिथ्यात्यकी उत्कृष्ट स्थिति बाँधकर अन्तर्मुहूर्तमें स्थितिघात किये बिना वेद फसम्यग्दृष्टि हुआ है उसके संक्रमविधानसे दूसरे समयमें सम्यक्त्वको उत्कृष्ट स्थिति नदीरणा होती है, इसलिए इसकी उत्कृष्ट स्थिति दीररणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा ऐसे जीवके प्रथम समयमै अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणा होती है इसलिए इसकी अनुत्कृष्ट स्थिति दीरणाका जघन्य काल एक समय कहा है और वेदकसम्यक्त्वका उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर है, इसलिए इसकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर कहा है ? सभ्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीगण अपने स्वामित्वके अनुसार सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान के प्राप्त होने के प्रथम समयमें होती है, इसलिए इसकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्पृष्ट काल अन्तमुहर्त है यह स्पष्ट ही है। सोलह कषायकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य बन्ध काल एक समय और उत्कृष्ट बन्ध काल अन्तमुहूर्त है, इसलिए तो इनकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। भय, जुगुप्सा ये संक्रमसे उत्कृष्ट स्थितिवाली प्रकृतियां हैं, इसलिए इनकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण बन जानेसे यह भी उक्त प्रमाण कहा है। किन्तु सोलह कषाय तथा भव और जुगुप्साको उदय उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होने से इनका अनुत्कृष्ट स्थिति उदारणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। यह जघन्य काल ऐसे कि किसी जीवने एक समय तक काधकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणा की और दूसरे समय में मानकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदारणा करने लगा। इसीप्रकार भय और जुगुप्साका उक्त काल भी घटित कर लेना चाहिए । इनके निरन्तर उदय-नदीरणाका नियम भी नहीं है, इसलिए भी यह काल बन जाता है । कषायोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके समय स्त्रीवेद और पुरुपवेदका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल एक आवलि बन जानेसे यह तत्प्रमाण कहा है। इसीप्रकार हास्य और रतिकी उत्कृष्ट उदीरणाका काल घदित कर

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