Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२ ]
उत्तरपउिदीरणाए ठाणा सेखायोगहार परूवणा
उक०
संखेज्जा समया । मणुसचपज्ज० अप्प० श्रोधं । ग्रवट्टि० जह० एस ०, पलिदो० असंखे० भागो । एवं जाव० ।
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१३८१. अंतरा० दुविहो णि० - प्रोषेण आदेश य । श्रघेण भुज० अप्प ० जह० एयस०, उक्क० सच रार्दिदियाणि । श्रवट्टि० णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एयस०, उक० वासपुधत्तं । एवं मणुस निए। एवं सव्यणिरय - तिरिक्ख पंचि०तिक्खितिय देवा भवणादि जाव णत्रवज्जा चि । णवरि अवत्त० णत्थि ।
६ ३८२. पंचिदियतिरिक्ख अपज्ज० अप्प० जह० एयस० उक० चउवीसमहोरते सादिरेगे । अवट्टि० रात्थि अंतरं । मसुम अपज्ज० अप्प० अडि० जह० एक्स०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अशुद्दिसादि सन्त्रा त्ति अवडि० पत्थि अंतरं । श्रु० प० जह० एयसमत्रो, उक्क० वासपुधत्तं । सब्बट्टे पलिदो० असंखे०
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है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । मनुष्य अपर्यातकों में अल्पतरप्रवेशकों का काल आंधके समान हैं । अवस्थितप्रवेशकों का जघन्य काल एक समय और उस्कृष्ट काल परूयके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ – सामादमुष्यों में अनुपसर्मवित्तमवपमुख्यक में ही होते हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है । शेष पद अपर्याप्त मनुष्यों में भी सम्भव है, इसलिए इनमें उनका काल ओघके समान बन - जाने से वह तत्प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है ।
६ ३८१. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । श्रोघसे भुजगार और अल्पत प्रवेशकों का जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है । अवस्थित प्रवेशकों का अन्तर काल नहीं है। अवक्तव्यप्रवेशकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए तथा इसीप्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय तिर्यक पत्रिक सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तक्के देवोंमें जानना चाहिए। मात्र इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्यपद नहीं है ।
विशेषार्थ --- यहाँ विशेष वक्तव्य इतना ही है कि उपशमसभ्य वस्त्रका उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात बतलाया है। और उपशमसम्यक्त्व के अभाव में भुजगार तथा अल्पतरपद सम्भव नहीं, इसलिए यहाँ पर घसे और उल्लिखित मार्गणाश्रमें उक्त पदों उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात कहा है। यद्यपि पाके काल में अल्पतरपद होते है पर उसकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर छह महीना से कम नहीं है, इसलिए वह प्रकृत में उपयोगी नहीं ।
$ ३८२. पञ्च न्द्रियांतर्यच अपर्याप्त जीवों में अल्पतरप्रवेशकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और प्रत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है । अवस्थितमवेशकोंका अन्तरकाल नहीं
। मनुष्य अपर्याप्तकों में अल्पतर और अवस्थित प्रवेशकों का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में अवस्थिनप्रवेशकों का अन्तरकाल नहीं है । भुजगार और अल्पतर प्रवेशकों का जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कट अन्तर वर्षकत्व प्रमाण हैं । सर्वार्थसिद्धि में उत्कृष्ट अन्तर