Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
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आदेसेण खेर० मोह० जह० डिदिउदी० श्रसंखे ० भागो । अजह० असंखेजा भागा । एवं सव्वरइय० सम्वतिरिक्ख- मणुस - मणुस अपज० देवा जाव अवराजिदा ति | मधुसवा० मणुसिणी० सम्बठ्ठदेवा जह० डिदिउदीर० संखे० भागो । अज० संखेखा भागा | एवं जाय० ।
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४४५. परिमाणं दुविहूं- -जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो शि०श्रोषेण आदेसेण य | ओघेण मोड़ उक्क हिदिउदी० केसिया १ संखे । अणुक्क० हिदिउदी० केत्ति ० १ अनंता० । एवं तिरिक्खा० । भदेसे. खेरहय० मोह० उनक० अणुक्क० डिदिउदी० केलि ? असंखेजा । एवं सव्वग्ड्य० सव्यपंचिंदियतिरिक्ख मणुस अप० देवा भबणादि जाव सहस्सार सि । मणुसेसु मोह० उक्क० हिदिउदी० केत्ति ० १ संखेजा । अणुक्क० द्विदि० उदीर० केति० ? असंखे । एवमादादि जाव मादा सा प्रमिजी सचदेव उक्क०
महाराज
मरएस ०
अणुक्क० डि दिउ दीर० ति० ? संखेजा । एवं जाय० ।
६४४६. जह० पय० । दुत्रि० णिद्देमो- ओघेण आदे० । श्रघे० मोह० जह० दिउदी० केत्ति० ? संखेखा । अजह० -डिदिउदी० केति० । अनंता । श्रदे०
भागप्रमाण हैं, अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । आदेश से नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके असंख्ातवें भागप्रमाण हैं, अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके असंख्यास बहुभागप्रमाण हैं | इसीप्रकार सच नारकी, सब तियकय, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देशस लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिती और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण है तथा अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव सब लीधोंके संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसीप्रकार अन्नाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
४४५. परिमाण दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका हैं - श्रोध और आदेश । श्रोत्रले मोहनी की उत्कृष्ट स्थिति उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके अदरक जीव कितने हैं ! अनन्त हैं। इसीप्रकार सामान्य तिर्योंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? श्रसंख्यात हैं ! इसीप्रकार सत्र नारकी, सव पश्चेन्द्रिय तिर्यक्रय, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव और भवनवाaियों से लेकर सहस्रार कल्प तक के देवों में जानना चाहिए। मनुष्यों में उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात है । इसीप्रकार श्रात कल्पसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यती और सर्वार्थसिद्धिके वेबमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उरीरक जीव कितने हैं? संख्यात हैं। इसीप्रकार श्रनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
६ ४४६. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका ६ प्रोच और आदेश । श्रयसे मोहनी की अन्य स्थितिके प्रदीरक औष कितने हैं ? संख्यात हैं । अजघन्य स्थितिके उदीरक