Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिने कसायपाहुरे
[वेदगो ७ १४५८. जह० पददकिदुविझणि श्री बोचणसाश्रादेस म्हाराोषेण मोह. जह द्विदि० जइ एयस०, उक्क० मंखेज्जा समया । अज० सम्बद्धा । एवं विदियादि छट्टि ति मणुसतिए जोदिसियादि सव्वट्ठा ति ।
४५९. श्रादेसेण रोग्य मोह० जह० द्विदिउदीर० जह. एयस०, उक्क. आवलि. असंखे०मागो | अज० सनद्धा । एवं पढमाए सवपंचिंदियतिरिक्ख-देवा० भवण-वाण । सत्तमाए मोह, जह० डिदिउदी० जह० एयस०, उक्क० पलिदो. असंखे०भागो' । अज० सव्वद्धा | तिरिक्खेसु मोह० जह-अज० सव्वद्धा । मणुसअपन. मोह० जह० विदिउदी. जह• एयस०, उक्क० आपलि. असंखे० भागो । अज० जह० आपलिया समयूणा, उक्क० पलिदो० असखे०भागो । एवं जाव० । काल अन्तर्मुहर्त कहा है। अपने-अपने स्वामित्व के अनुसार आननादि कल्पोंमें भवके प्रथम समयमै ही मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा बनती है। अब यदि ऐसी नदीरणा करनेवाले नाना जीव लगातार इन कल्पों और कल्पातीतों में उत्पन्न हों तो संख्यात समय तक ही यह का चल सकता है। यही कारण है कि इनमें मोहनीय की उत्कृष्ट स्थितके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। शेष कथन सुगम है ।
४५८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका द्र-ओघ और आदेश । श्रोषसे मोहनीयकी जघन्य स्थितिके उदीर कोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार दूसरोसे लेकर छठी ...| पृथिवीं तक के नारकी, मनुष्यत्रिक और ज्यानिपियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवों में जानना चाहिए।
विशेषार्थ--स्व मित्वको ध्यानमें लेने पर स्पष्ट हो जाता है कि मोहनीयको जघन्य स्थितिको उदीरपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा लगातार संख्यान समय तक ही हो सकती है। यही कारण है कि यहाँ मोहनीयको जघन्य स्थितिके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। शेष कथन भुगम है। आगे भी सुगम होनेसे अलग-अलग खुलासा नहीं करेंगे।
५६, आदेशसे नारकियों में मोहनीयकी अधन्य स्थितिके उदीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके 'असंख्यातवें भागप्रमाए है। अजघन्य स्थितिके उदोरकोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार प्रथम पृथिवीके नारकी, सब पन्चेन्द्रिय तिर्यकच, सामान्य देव भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें जानना चाहिए। साती पृथिवीमें माहनीयकी जघन्य स्थिनिके उदोरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कर काज पल्यफे असंख्यात भागप्रमाण है। अजधन्य स्थितिके उदीरफोका काल सर्वदा है। निर्धश्चोंमें मोहनीयकी जघन्य
और मजघन्य स्थिति के उदीरकोंका काल सर्वदा है। मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीय की अयाय स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल भावलिके असंख्यात + भागप्रमाण है । अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय कम एक आवलिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यानवे भागप्रमाण है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
1. प्राप्तौ श्रावलि असंखेषभागो इति पाठः ।