Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२] उत्तरपयडिउतीरणाए ठाणाणं भुजगारपत्रणा
२१३ ४७०. विदियादि सत्तमा ति भुज० जह० एयस०, उक्क० बे समया । अप्प० जह० एयस०, उक्कम संगट्टिदी देवाणा श्रीवहिदिमायागर जी महाराज
४७१. तिरिक्वेसु भुज-अवट्टि. ओयं । अप्प. जह० एयस०, उक्क० तिष्णि पलिदो० सादिरेयाणि । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिए । पंचिंतिरिक्खअपज ०. मणुसअपज मुज० जह० एयम०, उक्क. चत्तारि समया । अप०-अवढि० जइ० एयस०, उक० अंतोमु० ।
६४७२. मणुसतिए भुज० जह• एयस०, उक० चत्तारि समया । अप्पः जह० एगस०, उक० तिण्णि पलिदो० पुचकोडितिभागेण सादिरेयाणि । णवरि मणुसिणी० अंतोमुहुत्तेण सादिरेगे । अबढि०-अवत्त० ओघं ।
। ४७३. देवेसु भुज० जह० एयस०, उक्क०, तिष्णि समया । अप्प. जह. एगस०, उक्क तेत्तीस सागरोवमं । अबढि० श्रोधं । एवं भरण-बाणवेत. । णवरि भुजगारस्थितिके उदार फका उत्कृष्ट काल तीन समय कहा है। यहाँ श्रद्धाक्षय, शरीर ग्रहण
और संक्लेशक्षयसे भुजगारके तीन समय प्राप्त कर भुजगार स्थिति उदीरणाके तीन समय प्राप्त करने चाहिए । शेष कथन सुगम है।
४४. दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में भुजगारस्थितिके जदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अल्पतरस्थितिके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। अवस्थितस्थितिके उदीरकका काल ओघके समान है।
विशेषार्थ- इन नरकोंमें असंज्ञी जीव मरकर नहीं उत्पन्न होते, इसलिए इनमें अद्भाक्षय और संक्लेशक्षयसे ही भुजगार स्थिति उदीरकके दो समय प्राप्त होते हैं। शेष कथन सुगम है।
६४५१. तिर्यचा में भुजगार और अवस्थितस्थितिके उदीरकका काल माघके समान है। अल्पतरस्थितिके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तियंचत्रिक में जानना चाहिए । पंचेन्द्रिय तिय व अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें भुजगारस्थितिके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अल्पतर और अवस्थितस्थिति के उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है।
४५२. मनुष्यत्रिकमें भुजगारस्थितिके उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अल्पतरस्थितिके उदीरकका जघन्य काल एक समय और उकृष्ट काल पूर्वकोटिका त्रिभाग अधिक तीन पत्य है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यनीमें यह काल अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्य है। अवस्थित और अवक्तव्यास्थतिके उदीरकका काल प्रोधक समान है।
४७३. देवोंमें मुजगारस्थितिके उदोरकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अल्पतरस्थिति के उदीरफका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । अवस्थितस्थितिके उदीरकका काल श्रीफके समान है। इसीप्रकार भवनवासी और
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