Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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अयधवला सहिदे कला पाहुडे
[ बेदगो ७
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च अवगा च । श्रदेसेण शेरइय० प० अट्टि० णियमा अस्थि, सिया एदे च जगाओ च, सिया एदे च भुजगारगा च । एवं सव्वरइय० सव्यपंचिदियति रिक्खदेवा जाव सहस्सार चि । तिरिक्वेसु भुज० - अप० धत्रडि० जिय० अस्थि । मणुसतिए अप्प० अवट्टि० णिय० अस्थि । सेमपदा भयरिणा । मणुस पज० सन्नपदा मणिजा | आणदादि सब्बड्डा ति अप्प लिय० अस्थि । एवं जाव० ।
६ ४८०,
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आदे
१४७९. भागाभागाणु ० दुविहो जि० - ओघेण आदेसे० । श्रघेण श्रवत्त०उदीर० सव्वजी० के० ? अतभागो । भुज० असंखे० भागो । अवद्वि० संखे० भागो । अप्प संखेज्जा भागा । एवं सच्चरइय० सतिरिक्ख० मणुस अपज० -देवा जात्र सहस्सार ति । णवरि अवत्त० णस्थि । मणुसेसु अबडि० संखे० भागो । अप० संखेजा भागा। सेसपदा श्रसंखे० भागो । मखुसपज्ज० मणुसिणी० अप्प० संखेआ भागा | सेसपदा संखे० भागो । आणदादि सट्टा त्ति णत्थि भागाभागो । एवं जाव० । आदे० । श्रघेण मोह० मार्गदर्शक आचार्य श्री सुविधिसागर हैं, कदाचित ये नाना जीव हैं और एक अव्यस्थितिका उदीरक जीव है, कश चित् ये नाना जीव हैं और नाना अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव हैं। आदेश से नारकियों में अल्पतर और अवस्थित स्थिति के उदीरक जीव नियमसे हैं, कयाचित् ये नाना जीव हैं और एक भुजगार स्थितिका उदीरक जीव है, कदाचित् ये नाना जीव हैं और नाना मुजगारस्थितिके उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार सभी नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च सामान्य देव और सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । तिर्यखों में भुजगार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं। मनुष्यत्रिक में अल्पतर और अवस्थितस्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पद भजनीय हैं। आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में अल्पतरस्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
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६ ४७६. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- श्रोध और आदेश । श्रोघसे अवक्तव्यस्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त भागप्रमाण हैं । भुजगारस्थितिके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अवस्थित स्थिति के उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण है और अल्पतरस्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार सब नारकी, सब तिर्यश्व, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर सहस्रार कल्पतके देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं
| मनुष्यों में अवस्थितस्थितिके उदीरक जीव सब जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। शेष पों उर्वरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्विनियों में अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण है और शेष पदोंके उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। आनत कल्पसे ११ लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें भागाभाग नहीं है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
४८०. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोत्र और आदेश । श्रोसे