Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
View full book text
________________
...
मा० ६२ ]
उत्तरपयडिट्टिदीरणाए श्रद्धाच्छेदपरूवणा
मिच्छ० सम्म० बसंजल० - तिरिणवेद० जह० डिदिउदी० एया हिंदी समयाहियाचलियदि । सम्मामि० जह० हिदिउदी० सागरोत्रमवतं । बारसक० - कृष्णोक० जड़ ० डिदिउदी ० सागरोस् चत्तारि सत्तभागा पलिदो ० श्रसंखे० भागेगा | १५२१. श्रादेसेण रइय० मिच्छ० सम्म० सम्मामि० श्रोषं । सोलसक०सत्तणोक० ६० जह० डिदिउदी० सागरोवमसहस्सस्स चत्तारि सतभागा पलिदो० संखे ०भागेगा | एवं पढमाए । विदियादि सत्तमा तिमिच्छ० श्रोषं । सम्म० सम्मामि० जह० डिदिउदीर० सागरोदमपुधनं । सोलसक० सत्तणोक० जह० डिदिउदी० अंतोकोडा० ।
९५२२. तिरिक्खेषु मिच्छ० सम्म० सम्मामि० चषं । सोलसक० णवणोक ० जह० डिदिउदी० सागरो० चत्तारि सत्तभागा पलिदो० श्रसंखे० भागेण ऊणा । एवं पंचिदियतिरिक्खतिए । णवरि पज० इत्थिवेदो णत्थि । जोगिणी० पुरिस० स० णत्थि । सम्म० सम्मामि० भंगो | पंचिदियतिरिक्ख अपज० - मणुम अपज० मिल०सोलसक० सत्तणोक० जह० द्विदिउदी ० सागरोक्म० सत्त सत्तभागा चत्तारि सत्तभागा पलिदोवमस्सा संखे० भागेण दर्शक : :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ३५२३. मनुसतिए ओघं । णवरि पञ्ज० इस्थिवे० णत्थि । मपुसिणी ० मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, चार संज्वलन और तीन वेदको जघन्य स्थितिउदीरणा एक समय अधिक 'एक अवलिप्रमाण स्थितिके रहनेपर एक स्थिति है । सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सागरपृथक्त्व प्रमाण है । धारह कषाय और छह नोकषायकी जघन्य स्थितिउदीरणा एक सागरकी चार बढ़े सात भागप्रमाण है जो कि पल्यका असंख्यातवां भाग कम है ।
६५२१. आदेश से नारकियों में मिध्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग श्रधके समान है | सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा एक सागरकी चार बटे सात भागप्रमाण हैं जो कि पल्यका असंख्यातवाँ भाग कम है। इसीप्रकार प्रथम पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें मिथ्यात्वका भंग के समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मियात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा सागरपृथक्त्व प्रमाण है । सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा अन्तःकोदाकोड़ी है।
९४२२ तिर्यश्चों में मिध्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भंग श्रोत्रके समान है । सोलह कषाय और नौ नोकपायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा एक सागरकी चार बढ़े सात भागप्रमाण है जो कि पल्या असंख्यातवाँ भाग कम है। इसीप्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यवत्रिक में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेदकी स्थितिउदीरणा नहीं है तथा योनिनी तिर्यों में पुरुषवेद और नपुंसकवे की स्थितिउदीरणा नहीं है । सम्यक्त्वक भंग सम्यग्मि ध्यात्व के समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यख अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा एक सागरकी क्रम से पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग कम सात बटे सात भागप्रमाण और पल्यका असंख्यातवाँ भाग कम चार बटे साव भागप्रमाण है।
२३३
-
६५२३. मनुष्यत्रिक में श्रोघके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्त कौमें स्त्रीवेदकी ३०