Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयघषलासहिये कमायपाहुडे
[ वेदगो श्रावलियाहि ऊणाओ। मम्म०-सम्मामि० उक्क ० द्विदिउदी. सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ अंतीमुहत्तृणाश्रो। सोलसक० उक्क • द्विदिउदी. चत्तालीसंसागरो० कोड़ाकोडीअो दोहिं आवलियाहि ऊगाओ ! सोसायष्टिविविधीलावतालीमसाज कोडा. तीहिं प्रावलियाहि ऊणाओ । एवं सब्बणेरइय० । णवरि इथिवेद-पुरिसवेद० दीरणा गस्थि ।
५१९. तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खतिए ओघं । णवरि पन० इथिवेद उदी० णस्थि | जोणिणीसु पुरिस०-णgम. उदी० णस्थि । पंचिंतिरि० अएज० मणसअपज० मिच्छ.सोलमक०-सत्तणोक. उक० द्विदिउदी० मत्तरि-चत्तालीसंसागरोकोडा० अंतोमुहृत्तणाओ । मसतिए पंचिंदियतिरिक्खनियभंगो । देवाणमोघं । पवरि णयुस० उदीरणा गस्थि । एवं भवण-वाण-०-जोदिसि०-सोहम्मीसाणा त्ति । सणकुमारादि सहस्सारा ति एवं चेव । णवरि इस्थिवेद. उदी० पत्थि। प्राणदादि
वगैवज्जा ति छुव्वीसं पयडीणं उक० द्विदिउदीर० अंनोकोडाकोडी | अणुदिसादि सन्चट्ठा ति सम्म०-वारसक०-सत्तणोक० उक० टिदिउदीरणा अंतोकोडाकोडी | एवं जाव० ।
५२०. जहण्णाए पयदं । दुविहो णि-ओघेण आदेसेण य | ओघण
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कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण है। सम्यक्त्र और सम्यस्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा अन्त- ....51 मुहूर्त कम सत्तर कोड़ाफोड़ी सागर है। सोलह कपायकी उत्कृष्ट स्थितिउदीपणा दो श्रावलि कम चालीस कोडाकोड़ी सागर है। मी नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति उदोरणा तीन श्रावलि कम चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है। इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उदीरणा नहीं है।
६५१६. तिर्यश्च और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिको पोषके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि पचेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त कामें स्त्रीवेद की उदारणा नहीं है। तथा पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियों में पुरुषवेद और स्त्रीवेदकी जदीरणा नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त
और मनुष्य अपर्याप्त कामें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंको उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा अन्नमुहूर्त कम सत्तर और चालीस कोड़ाफोड़ी सागर है। मनुष्यत्रिको पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकके समान भंग है। देवोंमें ओपके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि देवीमें नपुंसकवेदकी उदीरणा नहीं है। इसीप्रकार भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशान कल्पके देवों में जानना चाहिए। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है। प्रानतकल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देवोंमें २६ प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा अन्तःकाडाकाडोप्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण है। इसीप्रकार अमाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
१५२०, जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-प्रोध और प्रादेश। ओघसे