Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुष्ठे
[ वेदगो ७
संखे ० भागहा० जह० उक्क० एयसमत्र । संखे० भागहा० जह० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी देवा । अणुदिसादि सव्धट्टा ति असंखे० भागहा० जहष्णु० एयसमओ । संखे० भागहा० जहण्णुक्क० अंतोभु० । एवं जाव० ।
१५०८. णाणाजीव भंगविषयाणु० दुविहो शि० - श्रघेण आदेसे० | ओघेण असंखे० भागवड्डि-हाणि अनडि० थिय० अस्थि । सेसपदा भवणिज्जा । एवं तिरिक्खे। आदेसेण रइय० असंखे० भागहा० अबडि० निय० अस्थि । सेसपदा भणिजा । एवं तिरिक्खेसु । आदेसेा खेरड्य० असंखे० भागहा ० श्रवट्ठि० गिय० अस्थि । सेसपदा भयणिजा । एवं सव्वणेरड्य० सध्वपंचिदियतिरिक्ख-मणुसतिय- देवा जाव तहस्सार ति । मणुस श्रपञ्ज० सव्वपदा भयणिजा । श्राणदादि सच्चड्डा ति असंखे० भागहा० गिय० अस्थि, सिया एदे च संखे० भागहाणिगोच, सिया एदे च संखे० भागहाणिगा च । एवं जाव० ।
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१ ५०९. भागाभागाणु ० दुविहो णि० - श्रोषेण प्रदेसे० | ओघेण असंखे ०भागहारिण० संखेजा भागा । अत्रद्वि० संखे० भागो । असंखे ० भागवड्ढि असंखे ० भागो । पदा भागो । सेसमम्गणासु विहत्ती व कायच्यो । वरिं मणुस्सेसु असंखे०इतनी विशेषता है कम अनाथ पहना चाहिए। अतिकल्पसे लेकर नौ मैवेयक तक देवोंमें असंख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है। संख्यात भागद्दानिका जबन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धिकके देश में असंख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल श्रन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
०८. नाना जी का आश्रय कर भंगविचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैश्रध और आदेश | ओोघसे असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपद नियमसे हैं, शेष पद भजनीय हैं। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियों में असंख्यात भागहानि और अवस्थितपद नियमसे हैं, शेष पद भजीनय हैं। इसीप्रकार सब नारकी, सच पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च मनुष्यत्रिक और सामान्य देवोंसे लेकर सहस्रारकल्प तक के देवों में जानना चाहिए। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पद भजनीय हैं। आनतकल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवामें असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये नाना जीव हैं और एक संख्यात भागहानि स्थितिका उदीरक जीव है, कदाचित् ये नाना जीव हैं और नाना संख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव हैं। इसीप्रकार अगद्दारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
१५०८. भागाभागनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है ओ और आदेश | श्रीसे असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अवस्थित स्थिति उदीरक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यात भागवृद्धिस्थितिके उदरक जीव श्रसंख्यातथें भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं। शेष मार्गगाबा