Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा• ६२] उत्तरपडिउदीरणाए ठाणाणं वडिपवणा
२२३ मणुसतिए ओयं । प्राणदादि सञ्चट्ठा त्ति अस्थि असंखे०भागहाणी संखे०भागहाणी । एवं जाव० ।
मार्गदर्शक सामिलाई प्रशिक्षणठ-बाओषणान प्रादेसे० | ओधेण मोह० तिण्णिवढि०-अवट्टि कस्स ? अण्णद० मिच्छाइटिस्स । तिएिणहाणि० कस्स ? अण्णद० सम्माइद्वि० मिच्छाइट्ठि० । असंखे०गुणवडि-हाणि. कस्स ? अण्णद. सम्माइडि० । अवत्त. भुज०भंगो । एवं मणुसतिए ।
४९८. आदेसेण णेरइय० तिपिणवड्डि-हाणी-अवट्ठि० ओघ । एवं सब्यणेरम-तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खतिय-देवा भवरणादि जाव सहस्सार नि । पंचि०तिरिक्खअपञ्ज०मणुसअपज्ज. तिणियड्डि-हाणि-अवद्धिः कस्स ? अण्णद० । आणदादि वगेवज्जा ति असंखे०भागहाणि-संखे भागहाणि कस्स ? अण्णद. सम्माइटि० मिच्छाइद्विस्स था। अणुदिसादि सब्वट्ठा ति असंखे०भागहा०-संखे०. भागहा० कस्स ? अण्णदरस्स । एवं जाव० ।
४९९, कालाणु० दुविहो णिक-श्रोघेण श्रादेसे य । अोघेण तिण्णिवड्डी केवचिरं ? जह० एयस०, उक्क० बेसमया। असंखे०भागहा. जह० एयस०, उक० तेवद्विसागरोयमसदं पलिदो० असंखे० भागेण सादिरे । संखे० भागहाणिक-संख०
देवासे लेकर सहसार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए | मनुष्यत्रिक आघके समान भंग है।
आनत कल्पसे लेकर सार्थसिद्धि तकके देवों में असंख्यात भागहानि और संख्यात भागहानि है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
• $४६७. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | अोघसे मोहनीयकी तीन बृद्धि और अवस्थान किसके होते हैं। अन्यतर मिथ्याष्टिके होते हैं। तीन छानि किसके होती हैं ? अन्यतर सम्यम्दृष्टि और मिथ्याष्टिके होती हैं। असंख्यात गुणवृद्धि और हानि किसके होती है ! अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती हैं। प्रवक्तव्यपदका भंग भुजगारके समान है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए ।
४६८. श्रादेशसे नारकियों में तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थानका मंग ओघके समान है । इसीप्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यञ्च, पंचेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार तकके देवोंमें जानना चाहिए । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त
और मनुष्य अपर्याप्तकों में तीन बृद्धि, तीन हानि और अवस्थान किसके होते हैं ? अन्यतरके होते हैं। प्रानतकल्पसे लेकर नौ त्रैवेयक तकके देवोंमें असंख्यात भागहानि और संख्यात भागहानि किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्याहष्टिके होती हैं। चनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें पसंख्यात भागहानि और संख्यात भागहानि किसके होती हैं। अन्य तरके होती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गेरणा तक जानना चाहिए ।
F४६६. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे तीन वृद्धियोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है। असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक