Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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२१० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[षेदगो ७ जह विदिउदी० जह० एयसमो, उक० अंगुलस्स असंखे भागो। अज० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । एवं जाव० ।
१४६३. भावो उक्क०-अणुक्क० जह• अजह० सम्वत्थ प्रोदइओ भावो ।
६४६४. अप्पाहुक्दुविहाचाहनउकालिदायकस्सपियदराजदुविहो णिओघेण आदेसे० । अोघेण सव्वत्थोवा मोह. उक्क द्विदिउदी० । अणक द्विदिउदी अणंतगुणा । एवं तिरिक्खा० । आदे० णेर० मोह० सम्वत्थोवा उक्क द्विदिउदी०, अणुक द्विदिउदी० असंखेनगुणा । एवं सब्बणेरड्य-सव्यपंचिंदियनिरिक्ख-मणुसमणुसअपज०-देवा अवराजिदा सि । मणुसपज०-मण सिणी०-सुबहदेवा मध्यस्थो० मोह० उ०डिदिउदी०, अणुक्क डिदिउदी० संखे गुणा । एवं जाव० ।
६४६५. जह० पयदं । दुविहो णि-पोषेण आदेसे० । ओघेण सव्यस्थो. मोहक जहहिदिउदी०, अज० द्विदिउदी० असंतगुणा । आदेसे० रइय० सम्वत्थो० मोह. जह द्विदिउदी०, अज विदिउदीर० असंखे गुणा । एवं सुव्यणेरइय०-सत्रअन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवे भागप्रमाण है। मजधन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यात भागप्रमाण है।
विशेषार्थ—मनुध्य अपर्याप्त यह सान्सर मार्गणा है। आगममें इसका जघन्य अन्तर ... एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है। उसे ध्यानमें रखकर यहाँ मोहनीयकी अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका जयन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
६४६३. भाव-मोहनीयकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका सर्वत्र औदयिक भाव है।
४६४. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है---जधन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है- प्रोष और आदेश । श्रोबसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरफ जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार नियंचोंमें जानना चाहिए । श्रादेशसे नारकियों में मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार सब नारकी, सब पन्चेन्द्रिय तिर्यच, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजितविमान तकके देवों में जानना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानमा चाहिए ।
__४६५. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और श्रादेश । श्रोषसे मोहनीयकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अजघन्य स्थिति के उदीरक जीय अनन्तगुणे हैं। श्रादेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अजघन्य स्थितिके पदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार सब नारकी,