Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२ ]
उत्तरपथखिन्दीरणाए ठाणं से सागियांगदार परूवणा
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र० मोह० जह० - अजह० द्विदिउदीर० केशि० ! असंखेजा । एवं पढमाए सत्तमाए सव्वर्षचि०तिरिक्त्र- मरणुसअप ० -देवा भवण० त्राण ० । विदियादि वह्नि ति मोहगदर्शक. द्विद्विरदी के सिंह केति०] असंखेजा । एवं मणुसजोदिसियादि जाव वराजिदा ति । तिरिक्खेसु मोह ० जह० जह० केति ० ? अनंता । मास पञ० - मधुमिणी० सव्वदेवा मोह० जह० अह० डिदिउदी० केनि० १ संखेजा । एवं जाव० ।
४४७. नाणु० दुविहो - जह० एक० | उक० पदं । दुबिहा मि० -- ओघेण आदेसे० । श्रघेण मोह० उक्क० डिदिउदीर० केडि खेत्ते १ लोगस्स असंखे० भागे । अणुक० केव० खेत्ते ? सुन्लोगे । एवं तिरिक्खा | आदेसेण सगदीस मोह उ०- अणुक० हिदीउदी० लोग० असंखे० भागे । एवं जाव० ।
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४४८. जह० पथदं । दुधिहो णि० - भोषेण आदेसेण य । ओषेण मोह जह० ड्डि दिउदीर • लोग असंखे० भागे । श्रज० सव्वलोगे । तिरिक्खसु मोह० जह०डिदिउदी० लोग० संखे० भागे । श्रज० सव्वलोगे । सेसमदीसु जह० - अजह० लोग०
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जीव कितने हैं ! अनन्त हैं। आदेशसे नागकियों में मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थिति के उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इस प्रकार प्रथम पृथिवी और सातवीं पृथिवीक नारकी तथा सब पश्चेन्द्रिय तिर्यच्च मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तर देवों में जानना चाहिए। दूसरी पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियों में मोहनीयकी | जघन्य स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात है। अजघन्य स्थितिके बदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसीप्रकार सामान्य मनुष्य तथा ज्योतिषियोंसे लेकर अपराजित विमान तक देवों में जानना चाहिए। तिर्यच्चोंमें मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वसिद्धिकं देवोंमें मोहनीयक जघन्य और भजघन्य स्थितिके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
९ ४४७. क्षेत्रानुगम दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- श्रोध और आदेश | ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरक जीवों का कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । अनुत्कृष्ट स्थिति उere itaोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोक क्षेत्र है । इसीप्रकार सामान्य खियंखों में जानना चाहिए। श्रादेशसे शेष गतियोंमें मोहनी की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरकोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागग्रमाण क्षेत्र है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गमा तक जानना चाहिए।
१४४८. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश वां प्रकारका हूँ-भोध और आदेश । ओक्स मोहनीयकी जघन्य स्थितिके उदीरकों का कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है और अजघन्य स्थितिके उद्दारकों का सर्वलोक क्षेत्र है। तिर्यश्वामें मोहनीयकी जन्य स्थितिके उदीरकोंका लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है और अजघन्य स्थितिके उदीरकों का सर्व लोक क्षेत्र है। शेष गतियों में मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके पदरोंका