Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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सविाहासागर
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो . असंखे भागे । एवं जावः ।
४४९. पोसणं दुविहं-जहः उक० । उकस्से पयदं। दुविहो णि-- भोघेण प्रादेसे । ओघेण मोह. उक्क० द्विदिउदी० लोग० असंखे० भागो अट्ठ-तेरहचोदस० | अणुक्क० सबलोगो ।
४५०. आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क ०-अणुक द्विदिउदी लोग० असंखे०. भागो छचोइस० । एवं विदियादि सत्तमा ति । वरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तं । । तिरिक्वेसु मोह० उक्क द्विदिउदीर० लोग असंखे०भागो छचोद्दस० । अणुक. सबलोगो। पंचिंदियतिरिक्खतिए मोह. उकाटिदिउदी० लोम० असंखे० मागो छचोदस० देनणा । अणुक० द्विदिउदीर० लोग असंख०भागो सबलोगो वा । लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-तिर्यश्लोंमें मोहनीयको जघन्य स्थितिके उग्रीरफ वे हतसमुत्पत्तिक बादर एकेन्द्रिय जीव होते हैं जो सत्कर्भसे कम या सम स्थितिको बाँधकर एक श्रावलि के बाद उसकी
उदीरणा करते हैं। यही कारण है कि यहाँका क्षेत्र लोकके मुख्यात भागप्रमाण कहा है। मार्गदर्शवक्षेत्र सम्बन्धी सब कथन सुगम है।
४४९. स्पर्शन दो प्रकारका है--जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है -श्रोध और आदेश। ओघसे मोदनायकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरकाने लोकक असंख्यात भागप्रमाण क्षेत्रका तथा समालीके चौदह भागों में से कुछ कम अाठ ओर तेरह । भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने मर्व लोकप्रमाग क्षेत्रका स्दर्शन किया है।
विशेषार्थ-यहाँ त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागनमाय स्पर्शन विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा और कुछ कम तेरह भागप्रमाण स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कहा है। शेष कथन सुगम है।
४५०, आदेशसे नारकियों में मोहनायकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके उद्धारकाने लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में जानना चाहिए । इसनी विशेषता है कि अपना अपना स्पशन कहना चाहिए। प्रधम पृथिवी में क्षेत्रके समान स्पर्शन है। तिर्यकचामें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिक वीरकोंने लोकक असंख्यात भाग और असमालीके चौदह भागामें से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकाने सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रि में माहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और समालीके चौदह भागामे से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके उदीरकोंने लोककेर असंख्याचवें भाग और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेगार्थ-- यहाँ सामान्य निर्यञ्चों और पन्नेन्द्रिय तियं च त्रिकमें मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके पदीरकोंका बसनालीके चौदह भागों से कुछ कम छह भागप्रमाण स्पर्शन मारणान्तिक