Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा० ६२ ]
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उत्तरपदीरणाए ठाना योगविधिसागर जी विराज सव्यपंचि०तिरिक्त माणुस मणुम पञ्ज० देवा भत्रणादि जाव अवराजिदा ति अि असंखेज्जा भागा। सेसमसंखे० भागो । मणुसपज्ज० - मणुमणि० सत्र हृदेवेसु अवट्टि संखेज्जा भागा। सेसं संखे० भागो । एवं जाव० ।
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४०३. परिमाणाणु ० दुविहो शि० - श्रघेण आदेसे० । श्रघेण संखे० भागचडि हाणि० केति० ? असंखेज्जा । श्रवट्टि० केत्ति० १ अता । संखे० गुणवडिहाणि प्रवत्त ० केति ० १ संखेज्जा | सव्वणिरः सव्यतिरिक्त मणुस आपज्ज० -भवणादि जाब एवमेवज्जा त्ति भुजभंगो | मणुसेसु संखे० भागहा० अवडि० केत्ति० ? असंखेज्जा | सेसपदा संखेज्जा । मणुस पज्ज० - मरणु सिणी० सच्चदुदेवेसु सव्त्रपदा संखेज्जा | देवगदिदेवा अणुद्दिसादि अवराजिदा ति भुज०भंगो। णवरि संखे० गुणबड्डि० केत्ति ० १ संखेज्जा । एवं जाव० ।
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६४०४ खेताणु० दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । प्रघेण अ०ि सन्चलोगे । सेसपदा लोग० असंखे० भागे । एवं तिक्खिा० । सेसगदीसु सच्चपदा लोग असंखे० । एवं जाव० ।
शेष पदवाले जीव सब जीवोंके अनन्तयें भागप्रमाण हैं। इसीप्रकार तिर्यकचोंमें जानना चाहिए । सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यच्च सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और 'भवनवासियोंसे लेकर अपराजित कल्पतकके देवों में अवस्थित पढ़वाले जीव असंख्यात बहुभाग 'प्रमाण हैं तथा शेष पदवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनो और सर्वार्थसिद्धि में अवस्थित पदवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाणु हैं तथा शेष पदवाले जीव संख्यात भागप्रमाण हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए ।
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६४०३. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश ओसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानि पदवाले जीव किसने हैं ? असंख्यात हैं । अवस्थत पदवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि और अव्य परवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासियोंसे लेकर नौ मैवेयक तकके देवोंका भंग भुजगारके समान है। मनुष्यों में संख्यात भागहानि और अवस्थित पदवाले जीव कितने हैं ! असंख्यात हैं। शेष पदवाले जीव संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब पदवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । देवगति में देव और नौ अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें भंग भुजगार के समान
। इतनी विशेषता है कि संख्यात गुणवृद्धि पदवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गात जानना चाहिए ।
४०४. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- भोष और आदेश । श्रोसे अवस्थित पदवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोक क्षेत्र है । शेष पदवाले जीवोंका क्षेत्र लोक असंख्यात भागप्रमाण है। इसीप्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। शेष गतियों में सब पदवाले जीवा क्षेत्र लोकके असंख्यात भागप्रमाण है। इसीप्रकार 'अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।