Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ कीरदि त्ति णासंकणिज, उदीरणादो चेव कम्मोदयस्स बि गयस्थत्तादो । ण च उदयादो उदीरणा एयंतेण पुधमूदा अस्थि, उदयविसेसस्सेव उदीरणाववएसादो। तदो उदीरणाए परूविदाए एसो वि परूविदो चेव | जो च थोवयरो विसेसो एत्थ त्रि वक्खाणकारएहि वक्खाणेयव्यो ति एदेणाहिप्पारण कम्मोइयो एत्थ सुत्नयारेण ण विस्थारिदो । अत्यसमप्पणामेत्तं चेत्र काय, तदो एंदाच सीमासयययणपस्सिदन कम्मोदयो एस्थ विहासियव्यो । एवं कम्मोदए विहासिए पढमगाहाए अस्थो समत्तो होइ।
* को कदमाए डिवोर पवेसगी त्ति पदस्स विदिउदारणा कायव्वा ।
१४१५. पयडिउदीरणाणंत मेत्तो हिदिउदीरणा कायब्बा, पचायमरत्तादो । सा धुण द्विदिउदीरणा बिदियगाहाए पढमपादे णिबद्धा ति जाणावणट्ठमेदं सुत्तमोहणं 'को कदमाए द्विदीए पवेसगो ति ।'
:४१६. एदरस पदस्स अस्थो द्विदिउदीरणाए ति तदो एदं बीजपदं द्विदिउदीरणासामित्तविसयपुच्छामुहेण पयट्टमस्सिऊण हिदिउदीरणा विहासियबा त्ति एसो एदस्स भावत्यो । सा च द्विदिउदीरणा मृलुत्तरपडिविसयभेदेण दुविहा होदि त्ति जाणाक्णद्वमुत्तरसुत्त माह
समाधान-ऐसी अाशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उदीरणासे ही कर्मोदयके - : अर्थका भी ज्ञान हो जाता है।
यदि कहा जाय कि उदयसे उदीरणा एकान्तसे पृथग्भूत है सा भी बात नहीं है, क्योंकि उदयविशेषकी ही उदीरणा संज्ञा है। इसलिए उदारणाका कथन करने पर उदयका भी कथन हो ही गया। और जो थोड़ी-सी विशेषता है सो उसका यहाँ पर भी व्याख्यानकारकोंका व्याख्यान करना चाहिए. इसप्रकार इस अभिप्रायसे कर्मादयके व्याख्यानका यहां पर सूत्रकारने विस्तार नहीं किया, अर्थका समर्पणभात्र किया। इसलिए इसी दशामर्षक वचन का आनय कर कर्मादयका यहाँ पर व्याख्यान करना चाहिए । इसप्रकार कर्मादयका व्याख्यान करने पर प्रथम गाथाका अर्थ समाप्त होता है।
* 'कौन जीय किस स्थितिमें प्रवेशक है। इस पदका आश्रय लेकर स्थिति उदीरणा करनी चाहिए।
४१५. अकृति उदारणाके बाद आगे स्थितिउदीरणा करनी चाहिए, क्योंकि वह अवसर प्राप्त है । परन्तु वह स्थिति उरणा दूसरी गाथा प्रथम पादमें निबद्ध है, यह बतलानेके लिए यह सूत्र अवतीर्ण हुना है-कौन किस स्थितिमें प्रवेशक है।
६४१६. इस पदका अर्थ स्थितिउदोरणास सम्बन्ध रखता है, इसलिए स्थिति उदारणाके स्वामित्त्रविषयक पृच्छाके द्वारा प्रवृत्त हुए इस बीजपदका प्राश्रय कर स्थितिजदीरणाका व्यापान करना चाहिए। यह इसका भावार्थ है। और वह स्थितिउदीरणा मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृतिरूप विषयके भेदसे वा प्रकारकी , यह ज्ञान कगनेके लिए भागेका सूत्र कहते हैं