Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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जयधषला सहिदे कसायपाहुडे
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज अट्टि जह० एयसमश्र, उक्क० सगट्ठिदी । एवं जात्र० ।
६३९९. अंतराणु दुविहो णि० ओषेण आदेसे० । श्रघेण संखे० भागसंखे० गुणवडि० जह० एस० संखे० भागहा० संखे ० गुणहा० अवत्त० जह० अंतोमु० | अथवा संखे० ०भागहा० जह० एवम० । उक्क० सव्वेसिवडपो० परियहं । अडि० जह० एस० उक० अंतोमु० ।
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[ वेदगो ७
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४०० आदेसेण सव्वरिय ०- सव्यतिरिक्ख मणुस श्रपञ्ज० भवणादि जाय एवमेवजाति ज०भगो । मणुसतिए भुज०भंगो । वरि संखे० गुणवड्डि- हाणिअवत० जह० अंतोमु०, उक० पुनको डिपृधत्तं । देवगदिदेवा अणुद्दिसादि सच्चा त्ति भुज०भंगो । वरि संखेगुणवडि० णत्थि अंतरं । एवं जाव १४०१. लालाजीवेहि भंगविचयाणु० दुविहो णि श्रोषेण प्रादेसे० । श्रवेण अव०ि शिप अस्थि । सेसपदा भयणिञ्ज ।। भंगा २४३ । एवं चदुगदीसु । वरि भंगा जाणिय वक्तव्या । मणुस अपज्ज० सव्वपदा भवणिज्जा । भंगा८ । एवं जाव० ।
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१४०२. भागाभागाणु० दुविहो शि० -- ओघेण आदेसे० । श्रघेण अव०ि सच्चजी० के० ? अता भागा। सेमांत भागो । एवं तिरिक्खा० । सव्वर०
गुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। श्रावस्थित पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
$ ३६६ अन्तमनुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोष और आदेश । श्रघसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात गुणवृद्धिका जधन्य अन्तर एक समय है, संख्यात भागहानि, संख्यातगुग्राहानि और अवक्तव्य पत्रका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं अथवा संख्यात भागहानिका जघन्ध अन्तर एक समय है और सत्रका उत्कृष्ट अन्तर उपार्थ पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है।
४००. आदेश से सब नारकी, सब विच मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासियों से लेकर नौवे सके देव भुजगारके समान भंग है। मनुष्यत्रिक में भुजगारके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि और अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पृवकोटिपृथक्त्व प्रमाण है। देवगति में सामान्य देव तथा अनुदिश लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवी भुजगारके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धिका अन्तरकाल नहीं है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
४०१. नानाजत्रोंका अवलम्बन लेकर संगविचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है और आदेश । श्रोघसे अवस्थित पद नियमसे हैं, शेष पद भजनीय हैं। भंग २४३ हैं । इसीप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि भंग जानकर कहने चाहिए। मनुष्य अपर्याप्तकों में सत्र पद भजनीय हैं। संग आठ हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
४०२. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओष और आदेश | अवस्थित पचा जीव जब जीवों कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं |
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