Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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मार्गदर्शक:- आचार्य श्री सविहिासागर जी महाराज गा०६२] उत्तरपयडि उदारणाए. ठाणा सेसारिणयोगहारपरूवण
१७७ ३८७. पदणिक्वेवे तत्व इमाणि निषिण अणिओगद्दाराणि- समुक्त्तिणा० सामित्तमप्याबहुअं च । समु० दुविहा-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिोघेण आदेसे । अोघेण अस्थि उक्त चड्डी हाणी अवट्ठाणं च । एवं चदुगदीसु । णवरि पंचिंदियतिरिक्ख अपज्ज०मणुसअपज्ज. अस्थि उक्क. हाणी अवट्ठाणं च । एवं जाप० । एवं जहाणयं पिणेदव्वं ।
३८८. सामित्ताणु० दुविह। णि जह• उक० । उक्क० पयदं । दुविहो णि.--ओघेण श्रादेसेण य । ओघेग उक• बड्डी कस्स ! अण्णद० उत्रसमसेढिमारुहमाणो अंतरकरणं कादृण मदो देवो जादो तदो छपवेसिय इगिवीसपवेसगो जादो, तस्स विदियसमयदेवस्स उक० वड्डी । उक० हाणी कस्स ? अण्णद० उषसमसेटिमारुहमाणो एकावीसंपय पवेसगो अंतरे कदे समयूणावलियमेत्तं गंतूण दोण्ह पवेसगो जादो, तस्स उक्त हाणी । तस्सेत्र से काले उक्क० समवठ्ठाणं ।
३८९. आदेसेण णेर० उक० वड्डी कस्स ? अएणद. जो चउवीसं पवेसमाणो अट्ठात्रीसं पवसेदि तस्स उक्क० वढी । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णद० अट्ठावीसं पवेसेमाणेण अर्णताणुबंधिच उके णासिदे तस्स उक० हाणी । एगदरत्थावद्वाणं । एवं सत्रणेरइय-तिरिक्ख ०-यनिदियतिरिकावतिय ३-देवा भवणादि जाब वगेवजा त्ति ।
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३३८७. पदनिक्षेपका अधिकार है। उसमें ये तीन अधिकार हैं-समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । समुत्कीर्तना दो प्रकारको है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है—ोध और आदेश । प्रोधको अपेक्षा उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थान है। इसी प्रकार थारों गतियों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट हानि और अवस्थान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | तथा इसी प्रकार जघन्य भी जानना चाहिए ।
८८. स्वामिस्त्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश के प्रकार का है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । श्रोबसे उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कोन है ? जो अन्यतर उपशमश्रेणिपर आगेहण करनेवाला अन्तरकरण करके मरा और देव हो गया । उसके बाद छह प्रकृतियों का प्रवेशक यह इक्कीस प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया । ऐसा वह द्वितीय समयवर्ती देव सत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो उपशमणिपर प्रारोहण करनेवाला इक्कीस प्रकृतियोंका प्रवेशक अन्तर करनेपर एक समय कम श्रावलिमात्र जाकर दोका प्रवेशक हो गया वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा वहीं अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है।
5२८६. आदेशसे नारकियों में उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो चौबीस प्रकृतियों का प्रवेशक अट्ठाईस प्रकृतियों का प्रवेशक होता है वह उत्कृष्ट वृद्धि का स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो अट्ठाईस प्रकृतियों का प्रवेशक है वह अनन्तानुबन्धीचतुकका नाश होनेपर उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। इनमेंसे किसी एक स्थानमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यन्च, पळचेन्द्रिय तिर्यम्पत्रिक, सामान्य देव